AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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देख अब सरकार में

देख अब सरकार में

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समाज स्वयं से लड़ने वालों को नहीं बल्कि तटस्थ और चुप रहने वालों को प्रोत्साहित करता है। या यूँ कहें कि जो अपनी जमीर से समझौता करके समाज में होने वाले अन्याय के प्रति तटस्थ और मूक रहते हैं, वो हीं ऊँचे पदों पे प्रतिष्ठित रहते हैं। यही हकीकत है समाज और तंत्र का।

जमीर मेरा कहता जो करता रहा था तबतक, मिल रहा था मुझ को क्या बन के खुद्दार में। बिकना जरूरी था देख कर बदल गया, बिक रहे थे कितने जब देखा अख़बार में। हौले सीखता गया जो ना थी किताब में, दिल पे भारी हो चला दिमाग कारोबार में । सच की बातें ठीक है पर रास्ते थोड़े अलग, तुम कह गए हम सह गए थोड़े से व्यापार में। हाँ नहीं हूँ आजकल मैं जो कभी था कलतलक, सच में सच पे टिकना ना था मेरे ईख्तियार में। जमीर से डिग जाने का फ़न भी कुछ कम नहीं, वक्त क्या है क़ीमत क्या मिल रही बाजार में। तुम कहो कि जो भी है सच पे हीं कुर्बान हो, क्या जरुरी सच जो तेरा सच हीं हों संसार में। वक्त से जो लड़ पड़े पर क्या मिला है आपको, हम तो चुप थे आ गए हैं देख अब सरकार में।


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