डर का तिरस्कार
डर का तिरस्कार


डर से ना डरो
डर को डरा कर रखो।
डर डराकर डरपोक
बना देता है।
पा लेता है
वो हर मंज़िल
जो डर को डरा
कर रखता है।
डर अकर्मण्यता
लोलुपता भीरुता
को पनपता है।
डर पर विजयी
पाने वाला
सबको डराकर
रखता है।
सो डर का डट कर
मुक़ाबला करो
डट कर डर का
सामना करो।
डरो नहीं डटे रहो
निर्भयता से अड़े रहो
डर की लंबी है फ़ौज
तो क्या
कतरा कतरा तक लड़े
रहो।
डर को तू
निकल फेंक
डर पर तू
जीत सेंक।
डर को तू नाथ दे।
डर को तू बांध दे।
बढ़ चल मशाल थाम
बरसात हो या
चिलचिलाती घाम।
बन जा तू आवाज़ें आवाम।
बढ़ता जा तू सुबह शाम ।
डर के लगाकर बाम ।
सत्य को स्वीकार कर
अब डर का तिरस्कार कर
तू डर का तिरस्कार कर।