डिस्पोजेबल इंकम
डिस्पोजेबल इंकम
डिस्पोजेबल इन्कम बने तो,
घर बनता है संवरता है और बिगड़ता भी है।
कुछ लोगों से रूबरू होने का
अंदाजे एहसास ही कुछ अलग होता है,
फिर वो जान अपने पास नहीं रहता
वो मेरे पास कैसे होगा हैं न ?
जिन्दगी की गगरिया पे बैठा कौआ
दिन-रात कंकर डाल डाल उम्र पी रहा
और मनुष्य समझे वो जी रहा हैं
मुझे अपने जीने का हक़ चाहिये
कोई बाहर से जले कोई अन्दर से
हर रंग प्यार के चुरा कर, जीने को कहते हैं
सो हर के नाम के जज मुझे
तनहाई, सजाये मौत फरमाइये
मैं अम्मी जैसे बहादुर नहीं हूँ
