दौर- ए- बराबरी
दौर- ए- बराबरी
चंद दिन ही गुजारे हैं अभी
कोई जिंदगी गुजार रहा
आज इस अल्प समय के
किंचित कष्ट को बिता पाना
सदियों की याद दिला रहा
इस पितृसत्तात्मक समाज की सत्ता
की आज़ादी भी खुद के पास है
फिर भी जननी के काम पर
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bsp; सवाल उठा रहा
ऐ सत्ता की हनक में चूर पुरुष
उस मातृत्व ने रखा है ख्याल तेरा
कभी तू भी तो बैठ
और पूछ उनसे
कि उनके मन की तरंगों में
क्या ख़्वाब चल रहा।