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चलो मुड़ चले

चलो मुड़ चले

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क्यूँ चुने विकल्प हमने

जीवन के ऐसे अध्याय से

जिसे ना कभी तुमने पढ़ा

न मैंने..!


लेते रहे कसोटी एक दूसरे की

क्यूँ करते रहे प्रश्नोत्तरी

जानते थे जब की उत्तिर्ण न तुम होंगे न मैं..!


गौरवान्वित जीवन में जीत को मोहरा बनाते

लगा लिए दांव

अब सबकुछ हारने की कगार पर खड़े..!


चलो मुड़ चले मंजिल की ड़गर वो ही तो है

जिसे हमनें कठिन समझ कर मोड़ लिया था..!


क्यूँ ना हाथ थामें सुगम कर लें

हर बाध्य को अनदेखा कर जागी आँखों से तलाशते है फिर से खोये लम्हें..!


घर की दहलीज़ को मरघट सी शांति से लपेटे पड़े है कुछ सवाल,

पढ़ ले वो अध्याय जिन में समाये हो सारे जवाब

चलो बदल लें मंदिर की घंटीयों के नाद में।


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