बंधन तुझसे ऐसा
बंधन तुझसे ऐसा


प्रेम को कैसे लिखूंँ
एहसास को शब्दों में कैसे बांधू
उसकी फिक्र को मेरी आँखों में पढ़ लो
इसे आदि और अंत में न नापो
मुमकिन ही नहीं
जो मतलब वो दर्शाता
मेरी ख्वाईश को दुहराता
उसकी गहराई को ना पूछो
करीब है वो मेरे , कितना ??
क्या तुम धड़कते दिल को रोक सकते हो?
नहीं!
उससे ही मेरी सांसे बंधी
क्योंकि!
डोर को तुम नहीं देख सकते
महक उठती हूँ मैं उसके होने से
कैसे?
मेरे नूर को तुम देख लो खुद
स्पर्श जाना पहचाना
फिर भी
हर बार नया
लगता
पता है क्यों?
प्रेम बढ़ रहा है मेरा उसका
रूह तक जो बस गया
उसका होना महसूस होता
हर पल हर लम्हा
मैं कोई नयी बात नही कह रही
प्रेम है तो यही होगा
सीख जाओ देना जो प्रेम को
पाओगे बेइंतहा यूही
प्रेम पर लिखना मुश्किल नही
ये तो भाव हैं जो उंगुली से थिरकते हैं
दिल की बात है ये खुद ब खुद
कागज को रंगीन करते हैं
मेरे एहसास बिखर कर सिमट भी गये
नहीं समझे तुम क्यों?
प्रेम है तो सँवर गये
निखर गये
उमंग बरसा गये
मुझे तृप्त कर गये।