Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

भीतर का रावण

भीतर का रावण

1 min
307



जला भीतर के रावण को

जो पाप तेरे मन में हो ॥


एक प्रयास तो अवश्य करो

मन के रावण से अब लड़ो ॥


है छिपा हुआ तुम में बैठा जो

रूप बदलकर रहता वो ॥


जब तक वो तुम में जीवित है

सब जन उससे पीड़ित है ॥


ग्रसित सहस्त्र पापों से

तुम से ही पोषण पाता है ॥


नाश कर हर मर्यादा का

आत्मा छलनी कर जाता है ॥


वो लाता अंधकार, वो लाता विनाश

रह जाता केवल तम, न रहता प्रकाश॥


स्वर्ण लंका भी तो ध्वस्त हुई

अहंकार रूपी सर्प-विष से ग्रस्त हुई ॥


क्या तुम को कुछ दिखता नहीं ?

क्या तुम को कुछ बुझता नहीं ?


क्या सही, क्या अनुचित हर बार

खोलो मन-मस्तिष्क के द्वार ॥


कुछ तो लाज शर्म करो

भ्रम में अब तो न रहो ॥


बस अब रावण दहन करो

भीतर का रावण तो समक्ष है

प्रमाण क्यों ? सब प्रत्यक्ष है ॥ 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract