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Kulwant Singh

Abstract Inspirational Others

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Kulwant Singh

Abstract Inspirational Others

भारत

भारत

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अरुण प्रभात किरणें प्रथम

चूमतीं हिंद भाल अप्रितम,

करतीं आदित्य रश्मियाँ

सृष्टि का अभिषेक प्रथम।


हिम शैल श्रृंगों से

अवतरित हो अप्सरा सी,

झूमती मद नर्तन करतीं

आलोक फैलातीं प्रफुल्ल सी।


नैसर्गिक सौंदर्य छटा निराली

गूंजते स्वर देवालयों से,

ईश स्तुति, अर्चन, आरती

हिंद के हर नगर से। 


शंखों का पावन नाद

स्पंदित घंटों का निनाद,

डोलते देवों के सिंहासन

भक्तों का अतिरेक उन्माद।


कन्या कुमारी की सुषमा

मन देख - देख हर्षाता,

तीन दिशा में विस्तृत जलनिधि

बंग, अरब, हिंद लहराता।


अरुणोदय और अस्ताचल

चरणों में शीश नवाता,

तीन सागरों का संगम

मिल रज - चरण बाँटता।


मंदाकिनी, कालिंदी, नर्मदा

शोभित करतीं हिंद धरा,

कावेरी, कृष्णा, महानदी

हरित सिंचित उपजाऊ धरा।


छलका अमृत जहाँ वसुधा

विश्व ख्याति पावन महत्ता,

उज्जैन, नासिक, प्रयाग, हरिद्वार

महाकुंभ तीर्थ लगता।


जनक विश्व सभ्यता का

हड़प्पा, मोहन-जोदाड़ो का,

शून्य की उत्पत्ति का

प्राचीनतम भाषा संस्कृत का।


वेदों, उपनिषद, पुराणों का

रामायण, महाभारत, गीता का,

भाष्कर, मिहिर, आर्यभट्ट का

सुश्रुत, जीवक, चरक का।

पूर्ण विश्व को पाठ पढ़ाया

दर्शन, संस्कृति, अध्यात्म,

ज्ञान, भक्ति, कर्म त्रिवेणी

अच्युत बहती धारा परमार्थ।


धर्मों, संस्कृतियों का अद्भुत संगम

पल्लवित अनेक मत संप्रदाय,

विभिन्न मत धाराएं मिलीं

बनी एक - प्राण पर्याय।


विस्मित करती पूरा वास्तुकला

उन्नत था इतना विज्ञान,

समृद्ध कला, कारीगरी

विश्व करता था सम्मान।


विद्वानों, वीरों की पुण्य धरा

ज्ञानी, दृष्टा, ऋषि, महात्मा,

बद्री, द्वारका, पुरी, रामेश्वर

हर धाम बसा परमात्मा।


संघर्ष, स्वार्थ, अहंकार, मद

परित्याग का दिया संदेश,

सत्य, अहिंसा, त्याग मर्म

विश्व ने पाया उपदेश।


तेरी गोद जन्म एक वरदान

माँ स्वीकारो कोटि प्रणाम,

जननी जन्मभूमि स्वर्ग समान

अभिनंदन भूमि लोक कल्याण।


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