बेटी
बेटी
आज भी इस समाज में
इस सदी इस राज में
लड़की या लड़का
जब भी यह प्रश्न उठता ?
मैं रह जाती हूं हैरान
क्या बेटों से ही है सारी शान ?
क्यू हैं वो सब मान के हकदार
जो बन नहीं सकते मेरे पहरेदार
जब भी माता पिता कराते लिंग की जांच
अंदर बैठी मैं विचलित हो जाती
जैसे आने को है मेरे अस्तित्व पर आंच
कुल का नाम चले बेटों से
जबकि कुल की लाज बचे बेटी से
फिर क्यूं मुझे आगे बढ़ने से
रोकते हो अपने प्रश्नों से
मुझे भी मौका देकर देखो
कैसे पंख फैलाऊंगी
कल्पना चावला किरण बेदी बन
खूब नाम रोशन कराऊंगी।