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monika goswami

Abstract

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monika goswami

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बचपन

बचपन

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कल्पनाओं के असीम सागर से परे, 

सीप की एक मोती के जैसे,

आयेगा तू इस जीवन में,

इस जीवन को ज़िन्दगी देने,

इन्तज़ार है मुझे हर उस क्षण का,

जब मेरा अक्स तुझपे नज़र आयेगा,

सीचू़ंगी जब तुझे अपने खून से,

पता है, तब ही ये रब वो मंज़र दिखलायेगा,

सोचती हूं और सोचते ही रहती हूं,

तेरी दुनिया को अपनी ही दुनिया में बुनती रहती हूं,

है कैसा ये अहसास जो अब तक नहीं हुआ था,

लगता है मेरा बचपन खत्म, और तेरा बचपन शुरू हुआ था!


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