बचपन
बचपन
आओ ,अब लौट चलें बचपन में
हमारे भूले बिसरे बचपन में
जब माँ चोटी पकड़ कर
बालों में तेल चुपड़ती थी,
और गालों पर, तेल की धार बह आती थी
माँ गुस्से से लाल होकर कहती थी
बालों का घोंसला बना रखा है
जब पापा सबसे आँख बचाकर,
धर देते थे पचास पैसे का वह सिक्का,
कहते थे, जा ,आइसक्रीम खा लेना
और हमें कुबेर का खजाना मिल जाता था।
जब दादी अकड़कर आती थी
बड़ बड़ करती, माँ को ये सुनाती थी
साड़ी पहनना सिखा दे इसको,
अब तो रिश्ता भी देखना है।
जब दादाजी अपने पोपले मुँह से,
पान थूककर हँसते थे
अभी उम्र क्या हुई है पगली,
अभी तो इसे खेलने दे।
जब चाचा कचहरी से आते थे
लाल पीले हुए, छड़ी हाथ में लेते थे
दो विषय में फेल हुई है,
अब स्कूल जाना ही बंद कर दे।
तब सोचो, कोई खतरा ही न था,
अकेले झाड़ियों से बेर चुनते
तब देखो,कोई डर भी न था,
तन्हा खेतों में ख़्वाब बुनते।
तो,चलो फिर लौट चलते हैं,
उस बचपन में,
महफूज़ बचपन में,
अल्हड़ बचपन में,
तब के बचपन में।