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दूरियाँ

दूरियाँ

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दूरियाँ बोझिल हो गई हैं

भले ही दूरियाँ सिमट गई हैं,

कुछ पलों में बदल गई हैं।


चले जाते थे बे अटके,

मिल आते थे बे खटके।


आज सोचते हैं,

वह भी कहाँ आता है,

हमें ही जाना पड़ता है।


फोन क्यों करूँ मैं ही,

वह तो याद करता नहीं।


उसने तो देखी होगी सेल्फी मेरी,

देखकर एक लाइक भी न करी।


रोज़ सुबह सुप्रभात करती रही,

वह भी तो मैसेज करे एक बार सही।


मोबाइल नहीं थे पर दिखावा भी न था,

दूरियाँ थी सही लेकिन दिलों में मलाल न था।


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