बचपन
बचपन
हाँ मैं फिर से बच्चा होना चाहता हूं
बचपन में फिर से खोना चाहता हूँ
ऊब गया हूँ समझदार होकर
जिम्मेदारियों का बोझ
ज़बरदस्ती ढोकर
उफ्फ ये कुदरत का
कैसा दस्तूर है
हर इंसान बड़ा होने पे
कितना मजबूर है
क्यूं नहीं थमती
ये ज़िन्दगी की रफ्तार
क्यूं नहीं करता कोई
बचपन पे ऐतबार
क्यूं इतनी जल्दी
बचपन छिन जाता है
जवानी का दौर
बेवक़्त आ जाता है
देख के बचपन को करते शैतानी
मैं उनमे फिर से एक होना चाहता हूँ
हाँ मैं फिर से बच्चा होना चाहता हूँ
बचपन में मैं फिर से खोना चाहता हूँ
टूटे हुए खिलौने पे
रोना चाहता हूँ
अपने आप को बारिश में
भिगोना चाहता हूँ
नन्हे हाथ पर फौलादी इरादे
हिमालय को समंदर में
डुबोना चाहता हूँ
हां मैं फ़िर से बच्चा होना चाहता हूँ
बचपन में मैं फिर से खोना चाहता हूँ
याद आता है माँ का वो आंख दिखाना
डांट डपट के रोटी खिलाना
ज़बरदस्ती नहला के पाउडर लगाना
खेल के थक जाऊं तो पैर दबाना
अपने आँचल में लिटा के लोरी सुनाना
परियों के देश की सैर कराना
रूठ जो जाऊं तो रो के मनाना
मेरे माथे को चूम के प्यार से जगाना
मैं यादों के इस समंदर में
खुद को डुबोना चाहता हूँ
हाँ मैं फिर से बच्चा होना चाहता हूँ
बचपन में फिर से खोना चाहता हूँ
दिन भर की भाग दौड़ में
कुछ छूट रहा है
अपने आप से खुद का रिश्ता
यूँ टूट रहा है
हर शख्स बनावटी मुखौटा
हर रोज़ लगाता है
अपने आप को हर वक़्त
खुद से छुपाता है
खुल के जीना हर इंसान
भूल गया है
आखरी बार कब हंसा था
ये बताना पड़ता है
तू हंसता भी है दोस्त
ये जताना पड़ता है
समझदारी का ये बोझ
खोना चाहता हूँ
हाँ मैं फिर से बच्चा होना चाहता हूँ
बचपन में मैं फिर से खोना चाहता हूँ।