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Rohit Agrawal

Abstract

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Rohit Agrawal

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एक सफर

एक सफर

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यूँ ही चल दिये इक दिन,

अनजाने सफर पर हम

नए रास्ते को खोजने,

बिना मंजिल का पता लिए !


कुछ दूर चले ही थे कि,

मोड़ कुछ यूं आए..

एक ओर था अँधेरा घना,

तो दूसरी ओर रोशन थे दीये !


सोचा क्यों न इक शाम बिताये,

होके कुछ तन्हा...

वैसे भी जमाने बीत गए,

खुद को खुद से रु-ब-रु किये !


इस रफ़्तार-ए-जिंदगी में,

जीने की कशिश खो सी गई

सुकुन पीछे रहता गया,

और गम हमसफ़र हो लिए !


इसी सोच में थे मशगूल,

न जाने कब रात हो गई..

मंजिलो की जुस्तजू में चले तो

खुद से मुलाक़ात तो हो गई !


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