बचपन ✨
बचपन ✨
ना पास होने की खुशी ना फेल होने का गम
जैसे चाहते वैसे जीते थे हम
पापा के दिए एक रुपए हजारों से कम नहीं थे
क्योंकि उन दिनों हम भी बच्चे थे
वो बचपन था सुहाना सा
जहां हर कोई लगता प्यारा सा
सब अपने मेरे साथ थे
उन दिनों की क्या ही बात थी
जीना चाहता हूं वो बचपन की जिंदगी फिर से
लेकिन हाथों से वक्त निकल जाता है रेत जैसे
श्याम होते सूरज खुद को न रोक पाया
वक्त का हाथ थामे न जाने बचपन कहा चला गया
क्यू छोड़ गई वो यादें हमें अकेला
फिर ढूंढता हूं वो खुशियों का मेला
अब समेटना चाहता हूं गुजरे पल की बाते
सच में वो दिन भी क्या दिन थे....
