बच्चे -शिक्षक के जीवन का अभिन्न अंग
बच्चे -शिक्षक के जीवन का अभिन्न अंग


आज मैं ऐसे बच्चों की बात करने जा रही हूँ
जो दिल के बहुत करीब है,
कुछ शहद की तरह मीठे हैं,
तो कुछ इमली की तरह खट्टे,
कभी अपने अश्रु को अपनी ताकत बनाते हैं,
और कभी अपने भय का सामना करने की
हिम्मत जिनके लिए मेरे कई रुप है,
कभी दोस्त तो कभी माँ, कभी सहायक तो कभी प्रतिस्पर्धा।
कभी सोचा नहीं था कि एक गुरु इतनी सारी
भूमिकाएँ भी निभा सकती है,
आज सही मायने में मैं बनी हूँ पूरी शिक्षिका
और गर्व है मुझे उन बच्चों पर जिन्होंने मुझे
एक पूर्ण शिक्षिका बनने का अवसर दिया।