बैठो कभी मेरे सामने
बैठो कभी मेरे सामने
बैठो कभी मेरे सामने
उकेर डालूं तुम्हारी शक्ल
उस खूबसूरत पन्ने पर,
जो कभी कर रहा है इंतज़ार
आपका व मेरा
मै दूँ शब्द मेरे,
उस कविता को
तेरे नाम की वो कविता
धीरे से मैं पढूं,
तब मुझे एहसास हो तेरा
तेरे होने का ,तेरे अपनापन का
ताकि तू चली जाए,
तो भी मैं इस तरह, ना डूबुं गम में
हमेशा की तरह
जैसा कि मै डूबा हुआ हूं
आज ,अभी, इस वक्त
तेरा ख्याल तेरी मौशिकी
तेरी याद ,तेरी जुल्फ
तेरा हंसना वो चश्मे वाली अदाएं
सब उकेर डालूं
उस वक्त जिस वक्त तू
मेरे ख़यालों में आए
ख्यालों में तू और भी अच्छी
खूबसूरती की परी लगती हो
सच कहूँ ,तू है सब मेरे लिए
पर मैं क्या
शायद कुछ नहीं
किंचित भी नहीं
शून्य मात्र
सोच नहीं सकता मैं
मैं ख्याली हूं
ख्यालों में जीना मुझे जन्नत लगता है
तू शब्द मुझे आज सब लग रहा है
सब नहीं तेरा जिस्म पूरा
सब कुछ लग रहा है