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Nitish Pandey

Abstract Inspirational

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Nitish Pandey

Abstract Inspirational

बातें फूलों की

बातें फूलों की

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छत पे फूल खिले

बिल्कुल नए अंदाज में

बादल के अंगराईयों के बीच

मेघ के बूंदों को थामे

हँस रहा,


मैंने उसकी तस्वीरें ली

पूछा,

क्या तुम्हें क्षणिक भी एहसास नहीं?

बाहर के शोर शराबों से,

आँधीयों की आहट से

उठी बेचैनियों से,

या इस दौड़ती दहकती

सूर्य की किरणों से।


शायद कुछ कह रहा हो

ध्यान से सुनना चाहा,


नहीं फर्क पड़ता मुझे,

बादल के गर्जनों से

ओले के बरसातों से


या, उन आँधीयों से

जो उड़ा ले जाएगी मुझे,

अपने ही धुन में

अपनों से कहीं दूर


और बिखेर दी जाएगी मेरी पंखुड़ियाँ,

और खत्म हो जाएगा मेरा अस्तित्व ।


हाँ, गिरूँगा, टूटूगाँ, बिखरूँगा

किन्तु निरंतर खिलूँगा,

गतिशील रहूँगा ।


कहकर चुप हो गया

शब्दों के कंपन कानों में गूँजती रही

क्या यह कुछ सिखाना चाहता है?


मैं निःशब्द, सुनता रहा

और बस सोचता रहा,

यह नित्य प्रतिदिन ऐसे ही खिलेंगे

किसी भी परिस्थितियों मे,


नहीं फर्क पड़ता इसे बाहर के कौतूहल से

इस चीखती-चिल्लाती सन्नाटों से

अनजान आने वाली बाधाओं से ,


ये तो बस,


बेपरवाह

खिलना जानता है

मुस्कुराना जानता है

और अपनी छोटी सी जिंदगी जीना जानता है ।


जीवन की टहनियों पर।


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