रिश्ते और ज़रा सी बात
रिश्ते और ज़रा सी बात
ज़रा सी बात थी
और
वही खत्म हो गई,
भावनायें आहत हुई
और
बोली मौन हो गई
न तुम बोले
न हम बोले
अपने अपने ज़ेहन में ज़हर घोले,
बाट जोहते रहे
बात आगे बढ़ने की,
बात जरा सी थी
लेकिन आगे न बढ़ी
आगे बढ़ी तो सिर्फ घड़ी की सुइयाँ,
हर कदम पर आहत भावनाओं के ज़ख्म को नासूर बनाती,
इंतज़ार एक पहल का, नेह के मरहम का
फिर से एक जरा सी बात का,
नई शुरुआत का बस इंतज़ार ...
