Vibha Katare
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गुनगुनी धूप में,
आँगन में पड़ी खाट पर,
आम से मिलती अधछनी छाँव में,
कोयल की कूक का
लोरी सा श्रवण करतीं,
आम की शाख को निहारती,
बौर आने के इंतज़ार में
खाट पर लेती दो वृद्ध आँखें,
भरोसे की आस लगाए
अगला बसंत भी देख पाने की।
मनःस्थिति
बसंत की आस
दहेज : दान या...
रिश्ते और ज़रा...