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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Fantasy

बासंती पवन

बासंती पवन

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सुन ओ छैल छबीली मतवाली नार गजगामिनी,

पवन हठीली सुकुमार

कहां चली कर के लकदक ये श्रंगार

मदमस्त यौवन पर्वत पर होके सवार। 


आगोश में तेरे सिमटा हुआ है संसार

चेहरे पे खेलता अप्रतिम सुनहरा निखार

नैनों से छलकता जाये प्यार बेशुमार 

गेसुओं की महक से हो रहे सब गुलजार। 


मन में लिए उमंग, मिलन की प्यास 

"ऋतुराज" में है तेरा अनुराग खास 

अधरों पे सजी है कोयल सी मिठास 

अंग अंग से छलक रहा प्रेम उल्लास। 


तेरे उभारों से आम्र मंजरी बौरा गईं हैं 

सरसों की कलियां भी कसमसा गईं हैं 

गेहूं, जौ, चना को भी जोश आ गया है 

जीरा, धनिया भी नशे में मदहोश हो गया है। 


"महुआ" के फूलों में मधुशाला सज गई है 

हर दिल में "टेसू" की अरुणिमा बस गई है 

गालों में मुस्कान की गिलौरियां दबाये हुए 

तरुणियां "काम" के कैनवास में रंग भर रही हैं। 


इतना सज संवर कर कहां चली ओ पगली 

आजकल जमाना बड़ा खराब हो गया है 

इज्जत के लुटेरे घात लगाए बैठे हैं चारों ओर 

सुंदरियों का बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। 


पर तुझे क्या , तू तो बासंती पवन है 

यौवन रस से भरपूर खिलता तेरा चमन है 

तुझे देखकर आहें भर रहे हैं सब नजारे 

स्वर्णिम आभायुक्त तेरा ये गुदाज बदन है। 


अरी ओ बासंती हवा, इतना भी ना इतरा के चल 

देख, धमाल मचा रहा है तेरा ये रेशमी आंचल 

डर है कहीं छलक न जाये तेरा सौन्दर्य रूपी जल 

इतरा के न चल, बल खा के न चल, जरा संभल। 


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