और मैं कविता की हो गई....
और मैं कविता की हो गई....


पहली बार माँ से....
दूसरी बार अपने आप से....
फिर अपने सपनों से....
बाद उसके जोश और
जुनून से हुआ मुझे प्यार,
इन सब पर लगा विराम....
जब तुमसे जुड़े मन के तार।
मगर ये टिकाऊ नहीं रहे....
और होने लगा मुझे अपने अतीत से प्यार।
औलाद के होने ने सिखाया....
करना मुझे अपने आज से प्यार।
ऐसे सभी अवसरों पर....
जब-जब हुआ मुझे प्यार....
लिख डाला मैंने भावनाओं को अपनी
कलम से जरीये कविताओं में,
तुम इसी वहम में जीते रहे कि....
मेरी पहली कविता तुम्हारे लिए रही।
सच तो यह है कि हमेशा से ही....
कविता मुझमें और मैं कविता में रही।
कविता में मैं खुद ही को लिखती रही....
और तुम समझते रहे इसे बस....
मेरे शब्दों की कारीगरी।
जानते हो इसीलिए तो तुमसे मेरा
प्रेम टिकाऊ न रहा और
मैं कविता की हो गई ।।