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Abhishek Singh

Abstract

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Abhishek Singh

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अर्थ भी तुम व्यर्थ भी तुम

अर्थ भी तुम व्यर्थ भी तुम

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तुम रात हो तुम दिन हो।

तुम रंग हो तुम उमंग हो।

तुम दर्द हो तुम मर्ज़ हो।

तुम ही तो मेरे फ़र्ज़ हो।

मेरे जीवन का एक क़र्ज़ हो।


तुम अस्तित्व हो तुम आगाज़ हो।

तुम चाँद हो तुम विश्वास हो।

अंधेरे को चीरती जो, वो प्रकाश हो।

तुम जीवन हो तुम अन्त हो।

ख़ुशियाँ तुम अनन्त हो।


अर्थ तुम हो व्यर्थ तुम हो !

जीने की हर शर्त भी तुम हो !


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