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Sudhir Srivastava

Inspirational

4  

Sudhir Srivastava

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अंतिम सत्य

अंतिम सत्य

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आखिर खुद पर खुदा बनने का

इतना सनक क्यों सवार है?

अपने धन दौलत पद कद

रुतबे, दहशत, का इतना अभिमान क्यों है?

अंत तो तुम्हारा भी वही है

जो हर इंसान की अंतिम परिणति है।

तुम कोई विशेष तो हो नहीं

कि तुम्हारे लिए प्रकृति का नियम बदल जायेगा?

कैसे भी कभी तो होगी ही तुम्हारी भी मृत्यु

तुम भी विदा होगे इस नश्वर संसार से

निष्प्राण होकर बेजान हो जाओगे

लाख साधन संपन्न सुविधाओं के मालिक होकर भी

जाओगे बांस वाले वाहन पर

जिसमें न तेल लगेगा न चालक होगा न इंजन होगा

जो लग्जरी भी न होगा

जो अमीरों गरीबों में भेद न करता

जो ले जायेगी तुम्हें भी चार कंधो के सहारे

जिस पर तुम्हारा कोई अंकुश या नियंत्रण नहीं होगा।

उसमें कौन अपना कौन पराया है 

तुम्हें ये भी पता नहीं होगा

न ही तब तुम्हारी इच्छाओं का कोई महत्व होगा

तुम्हारे अपनों के वश में भी कुछ नहीं होगा,

जितना जल्दी हो तुम्हारी निर्जीव काया को

तुम्हारे अपने ही जल्दी से जल्दी

तुम्हारी मिट्टी हो चुकी काया को

शमशान ले जाने को आतुर होंगे,

चिता पर तुम्हें लिटाकर आग लगायेंगे।

तुम्हें जलता देख भी नहीं बचायेंगे

तुमसे हर रिश्ता तोड़ मुँह छिपाएंगे,

तुम जलकर खाक हो जाओगे,

तुम अपना हुस्न, शबाब , जवानी

धन, दौलत, नफरत, शोहरत 

छल कपट ईर्ष्या , लड़ाई, झगड़ा

और तरक्की सब यहीं छोड़ जाओगे।

कल तक चाहे जितना इतिहास तुम लिखते रहे होगे

आखिर तुम भी तो इतिहास हो जाओगे,

शमशान में जलकर राख बन जाओगे

तुम भी मिट्टी में ही मिल जाओगे

किसी लायक नहीं रह जाओगे

सिर्फ कुछ लोगों के दिल में कुछ ही दिन के लिए ही

सिर्फ स्वार्थ वश याद रह जाओगे,

चंद दिनों बाद एकदम भुला दिए जाओगे

सब यहीं छोड़ खाली हाथ चले जाओगे।



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