अंधी दुनिया
अंधी दुनिया
उसे यूँ मांगते हुए देखकर
मन में जाग उठा विचार,
अंधी वो है आँखों से या
फिर आँखों वाला यह संसार,
जोर जोर से कोई धुन गा रही थी
हल्के से बस हल्के से मुस्कुरा रही थी,
उदास पड़ी दुनिया के काले चेहरे को
अपनी ख़ुशियों से चमका रही थी,
न थी कोई भी शिकन उसके माथे पर
वो अपने ही धुन में कहीं जा रही थी ,
सबको सबकुछ नहीं मिलता यहां ,
बस खुश रहो हर पल
यह सबक सबको मुफ्त दिए जा रही थी...
