अमर जवान
अमर जवान
सीमा पर लड़ता वह अमर जवान
छोड़ आया घर -आँगन और परिवार
मान लिया उसने संसार अपना
इस रणभूमि को ही।
छोड़ आया संगी - साथी
संग खेला था जिनके,
खेलता है अब वो केवल
गोली, बारूदों और मृत्यु से।
वो गिरकर सँभल जाता है
बर्फ़ीली चादरों, पथरीली रास्तों
और कंटीली झाड़ियों पर,
वो आँसू नही बहाता
क्योंकि उसे तो बहाना है
कतरा-कतरा अपने रक्त का।
देख नही पाता दिवाली की जगमगाहट
उड़ा नही पाता होली पर गुलाल
सराबोर हो जाता है केवल
स्त्रावित होते लाल रंगों से।
उसे नही आती अब
याद अपने प्रियजनों की
वो बस करता है फरियाद
वतन पे शहादत होने की।