अकाल पड़ा
अकाल पड़ा


अकाल पड़ गया है जैसे जग में ,
आदर प्रेम और सम्मान का ,
पाना चाहे जग में सब इसको,
पर देना किसी को भाता नहीं,।
सच्चाई की बाते सब करते ,
खुद कितने सच्चे ये ना कहते,
दूसरो की बुराई खूब है दिखती,
अपनी तो सब अच्छी ही लगती,।
सीख देने में तो माहिर हैं सब,
भले खुद को कुछ ना आता हो,
कभी ना करते तारीफ किसी की,
कमियां ढूढने में लगे हैं सब।