बिखरे ख़्वाब समेट रहा हूंँ
बिखरे ख़्वाब समेट रहा हूंँ
ऐ-जिंन्दगी यह कैसा आया तूफ़ान है,
तिनका -तिनका बह गया अरमान है,
ख़्वाब सजाए हमने जो भी आंँखों में,
उसका बिखरता जा रहा आसमान है,
क्यों ऐसी बेरुखी, क्यों ऐसी हलचल,
ग़म में तब्दील हुआ खुशियों का कल,
बड़े अरमानों से सजाया जो आशियां,
बिखर कर रह गया ठहरा ना एक पल,
खेला ऐसा क्यों मेरा नसीब खेल गया,
मांगी थोड़ी सी खुशियांँ वो दर्द दे गया,
ज़िन्दगी ये बता आखिर क्या खता हुई,
किस गुनाह के लिए ऐसी सजा दे गया,
बिखरे ख़्वाबों के समेट रहा हूंँ निशान,
पर यहांँ तो मिट गई है मेरी ही पहचान,
खुशियों का आशियां हुआ करता जहांँ,
आज दर्द से सिसक रहा हो गया वीरान,
क्या मिला आंँखों में ये ख़्वाब सजाकर,
सब कुछ तो रह गया है यहांँ बिखरकर,
अब वक्त तूने क्यों दिखाया ऐसा ख़्वाब,
जिसे तकदीर ने मिटा दिया है लिखकर।