"अजीब रीत न्यारी"
"अजीब रीत न्यारी"
जहाँ गुंजी पहली किलकारी
आज वही जाने के लिए
सोचना पड़ता है सौ बारी
कैसी बनायी ये रीत न्यारी
जिस बाबुल अंगने
सच हुए कई अरमान
आज क्यों लगता वो आंगन अंजान
कैसी ये किस्मत हमारी
कैसी बनायी ये रीत न्यारी
बेटियाँ होती परायी
बाबुल के घर से पिया घर आई
पर मायका भूल न पाई
माँ की बेटी प्यारी
कैसी बनायी ये रीत न्यारी
इस दिल में हजारों ख्वाहिशें पलती
पर उन्हें कभी मंजिल नहीं मिलती
अधूरी रह जाती है सब ख्वाहिशें हमारी
कैसी बनायी ये रीत न्यारी
