ऐसे जो ज़ख्म मिलते रहे तो
ऐसे जो ज़ख्म मिलते रहे तो
ज़ख्म गर गैर से मिले ,तो अपने लगाते उन पे मरहम।
ज़ख्म अपनों से जब मिलते, तो बने नासूर देते ग़म।
ज़ख्म जब दर्द देते हैं याद जालिम की आती है,
ज़ख्म यादों में शामिल है याद मिट जाए किसमें दम।
ज़ख्म दिल में ज़िगर में है रहे हर पल बने धड़कन,
ज़ख्म काँटों से मिलते हैं फूल के साथ है हरदम।
ज़ख्म परवाना बनता है सम्आ पर जां लुटाता है,
ज़ख्म से प्यार गर कर लो ज़ख्म बन जाएगा मरहम।
ज़ख्म है पूछता ऐसे ही कुछ बोल दो मुझसे,
ज़ख्म रातों में जलते हैं सुबह बन जाते हैं शबनम।