अग्निपरीक्षा
अग्निपरीक्षा
एक कंलक लिए जीवन भर
काल सी काली कोठरी में हूँ,
ज़िंदगी के हर पड़ाव पार कर
अग्नि की परीक्षा देती ही हूँ...!!!
एक परीक्षा राम ले गए
एक परीक्षा इंसान ले रहे
कब तक दबी कूचली जाऊं
कहाँ से इंसानियत का दर्जा लाऊँ....!!!
अब न दूँगी मैं कोई परीक्षा
अब खुद करूंगी अपनी रक्षा
नही रहा जब राम कोई तो,
क्यों दूँ मैं जल सीता परीक्षा...!!!
दस दिशा में यश कमाया
राम को अवध नरेश बनाया
फिर एक शक का बीज लगाया
स्त्री को रामायुग में अपवित्र बताया....!!!
लंक जीत सिया घर लाए,
फिर चरित्र पर उंगली उठाए
तो काहे लाए तुम पिया छुड़ाए
अब ये बात हृदय जलाती जाए....!!!
उस अग्नि से निगल प्रकट भई मैं,
लेकिन मन की अग्नि न शांत हुई
हे नाथ! पिया राम हमारे सुन लो,
इस परीक्षा में सिया पूरी जल गई....!!!