अभिमान
अभिमान
मौत विधी का विधान है
फिर भी हमें कयूं इतना अभीमान है
जाना चार कंधों पे हमें
जब किसी नाकारा वस्तु के समान है
क्यूं है इतना द्वेष हम में
क्यूं यह इतना रोष है
बीत जाना जब इस वक्त ने
हाथ से फिसलती धूल के समान है
रहे कृत्वय निष्ठ हम
नेक अपने क्रम हों
जरूरत मन्दौ के लिए
हम फलदार वृक्ष के समान हों
ना होगा दुबारा यह जीवन
ना होंगें यह बहुमूल्य क्षण
कर जाआएं हम उनका भला
जो असमर्थता मे सुदामा के समान हो
रहे स्मरण ये पंक्तियाँ
रहे स्मरण ये सत्य यूं
जिस तरह सरस्वती द्वारा
वृणित ज्ञान का कोई सार है।