STORYMIRROR

Udit Dobhal

Abstract

4  

Udit Dobhal

Abstract

अभिमान

अभिमान

1 min
403

मौत विधी का विधान है

फिर भी हमें कयूं इतना अभीमान है

जाना चार कंधों पे हमें

जब किसी नाकारा वस्तु के समान है


क्यूं है इतना द्वेष हम में

क्यूं यह इतना रोष है

बीत जाना जब इस वक्त ने

हाथ से फिसलती धूल के समान है


रहे कृत्वय निष्ठ हम

नेक अपने क्रम हों

जरूरत मन्दौ के लिए

हम फलदार वृक्ष के समान हों


ना होगा दुबारा यह जीवन

ना होंगें यह बहुमूल्य क्षण

कर जाआएं हम उनका भला

जो असमर्थता मे सुदामा के समान हो


रहे स्मरण ये पंक्तियाँ 

रहे स्मरण ये सत्य यूं

जिस तरह सरस्वती द्वारा 

वृणित ज्ञान का कोई सार है।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Udit Dobhal

Similar hindi poem from Abstract