अब तो कलम भी हार गई
अब तो कलम भी हार गई
ये कैसी बवा
धरा पर आई है,
हर घर-हर पल
मौत तांडव कर रही है,
दवा और दुवा कुछ भी
काम नहीं कर रही है,
न अस्पताल में और ना ही श्मशान में
जगह मिल रही है,
चारों ओर
मानव त्राहि-त्राहि माम् हो रहे है,
कोई-सा दिन या कोई-पहर
नहीं खाली जाता है,
किस न किसी के अजीज की
मरने की खबर आती है,
अब तो अश्कों से
आँसू भी इस तरह भयभीत है,
इनसे अब तो रोया नहीं जाता है
*ॐ शांति ॐ*
और श्रद्धांजलियां दे कर,
लिख-लिख
अब तो कलम भी गई है हार,
मत कर ऐ मौत !
तू इतना भी तांडव अब ठहर जा,
बिना कसूर किसी के
अपनों को यूं ही उठाती रही जा,
शर्म कर तू अब थोडा-सा
शर्म नहीं आती तुझे क्या ?
बे-शर्मी से उजाड़ती है
किसी का भी घर तू क्यों ?