"आत्मज्ञान "
"आत्मज्ञान "
मैं तुम्हारे लिए
प्रार्थना नहीं करूंगी
किसी मंदिर किसी मस्ज़िद
किसी गुरूद्वारे या किसी चर्च में
मैं नहीं कहती हूं प्रार्थनाओं को सुनने के लिए
किसी अदृश्य शक्ति के कान नहीं हैं
किंतु मैं जानती हूं आत्मकेंद्रित प्रार्थनाओं की
मेरे शब्दों की बुदबुदाहट
उस अनंत ब्रह्मांड तक शायद ही पहुंचे
इसलिए मैं तुम्हारे लिए
किसी अदृश्य शक्ति के दरवाज़े पर
हाथ जोड़कर प्रार्थना नहीं करूंगी
क्योंकि मैं जानती हूं तुम्हारे लिए प्रार्थना में
मेरा स्वार्थ मेरी आत्मा पर राज करेगा
मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना नहीं करूंगी
किंतु मैं उकसाउंगी तुम्हारे आत्मतत्व को
तुम्हारे मन के प्रक्षालन के लिए
मैं प्रार्थना नहीं करूंगी तुम्हारे लिए
मैं बीज बो दूंगी तुम्हारे मष्तिष्क में
ईश्वरीय नहीं आत्म- निर्दिष्टता के
मैं प्रार्थनाओं में नहीं
दैनंदिन क्रियाओं द्वारा
ले जाऊंगी तुम्हें
उस अनंत आकाश और ब्रह्मांडीय सागर में
जहां प्रार्थनाओं और धर्म से भी ऊपर कोई तत्व है
वह है "आत्म ज्ञान का तत्व "
मैं किसी अदृश्य शक्ति की देहरी पर
हाथ नहीं जोड़ूगी तुम्हारे लिए
क्योंकि मैं जानती हूं
"आत्म ज्ञान" जब ज़िंदगी की सीधी सड़क पर चलता है
तो प्रार्थनायें निराधार साबित होती हैं।