आस होनी चाहिए
आस होनी चाहिए
चाह है जीवन की ग़र, तो आस होनी चाहिए।
आस भी नहीं मामूली, वो खास होनी चाहिए।।
आस होनी चाहिए वो आसमाँ के ख़्वाब सी।
उस ख़्वाब में कुल आसमाँ, मुट्ठी में होना चाहिए।।
चाँद की चाहत हो ग़र, तो चाँदनी है हाथ में।
सपनों को पाने का, यूँ कुछ हिसाब होना चाहिए।।
चिमनियों की चाह में, जुगनू न बन जाए नसीब।
चिमनियों के लिए सूरज, लक्ष्य होना चाहिए।।
जागी हुई आँखें रहें, जागी हुई ही चेतना।
जीने को जीते हुए, सोते में भी जगना चाहिए।।
हो खुशी या फिर ग़म रहे, मुस्कान होनी चाहिए।
मुस्कान वो मुस्कानों की, वजह सी होनी चाहिए।।
हांँ अगर जीना है तो, बड़ी आस होनी चाहिए।
हौसलों के साथ में, मुस्कान होनी चाहिए।।