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Gaurav Gyan

Abstract

4.3  

Gaurav Gyan

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आजादी ये जहां से

आजादी ये जहां से

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कुछ ग़ज़ल आप की है,

कुछ ग़ज़ल मेहमाँ सवालों की है, ए…दर्द,²

ए...दर्द तासीर, हमारी सवाल की है।

जग मुस्कुराहट, मुस्कुराया, मुस्कुराया ये जहां...,

पल भर की अंगड़ाई,ये जहां की है।


 पल कुछ, और पल, और... जलती स़मा,²तो

मोहब्बत-ए-इश़्क की होती,

जुग़लबन्दी...

और कहूं क्या आजादी²,

हम कफ़न ले, 

मुस्कुराते चलते है,

हमारे लिए।


रंग चादर लहू से अपनी,

मोहब्बत-ए-इश़्क ,

के नाम,किए चलते है।

दर्द रहता सीने मे,पर ...²

मुस्कुराता चेहरा दिखता ज़माने में।


मुल्क़ से इश़्क... मुल्क़ से इश़्क... हमारी,²जन्नत-ए-जहां है,

क़यामत से क़यामत तक,हमारा इश़्क...

क़यामत से,क़यामत

तक,हमारा इश़्क...

इश़्क का आफ़तुर ,परछाई बन,जहां में है।


और ग़ज़ल...हमारी,²

हर के सीने से गुजर रहा है।

और कहूं क्या आजादी,

तुम बिन मै बेजान...

मिट्टी का रेत बिखर रहा हूँ।²


चाह है मेरा चाह है तुम्हारा,

चाहत, चिलमन से आते...

जलती सम़ा की रौशन पर,

थमती सांसो पर, हो

इक ग़ज़ल और...,²

इश़्क - ऐ - मुह़ब्बते - ऐ-जहां की

और...

बस, इन रंगो से,

लिपट जांऊ, लिपट जांऊ, 

लिपट जाए , बन के कफ़न।


और² चेहरा चमके, हो मिट्टी से सना, या ना

और मेरे शव से लिपट... मुस्कुराता रहे,

मेरा कफ़न...

चाहूँ क्या तुमसे और... ऐ ...

ऐसी हो मेरी आजादी,

इस जहाँ से।


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