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Sneha Bagdiya

Inspirational

4.5  

Sneha Bagdiya

Inspirational

​आज़ाद तो है हम, बस अपनी नज़र में

​आज़ाद तो है हम, बस अपनी नज़र में

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कैसी आज़ादी है,

कैसा जश्न है?

जात पात में इंसान बँटता ता जा रहा,

सियासत के नाम पर न जाने क्या अपना रहा?

आज़ादी को हर किसीने अपने तरीके से अपनाया,

सभी ने अपनी मर्ज़ी से अपना हिस्सा पाया,

फिर भी जंग सी लडी जाती है घर घर में,

हाँ, आज़ाद तो है हम, बस अपनी नज़र में।


फासलों की हदें अब अपनो से शुरू होती है,

धरती माँ भी देख, खून के आँसू रोती है,

उसकी सर जमीन न जाने कितने हिस्सों में बँटती गयी,

टुकडें टुकडें होकर हर कदम पर कटती गयी,

कैद है सभी फिर भी अपनी ही दीवार - ए - दर में,

हाँ, आज़ाद तो है हम, बस अपनी नज़र में।


मिटटी भी अब भूख उगलने लगी ,

एक बीज भी हमसे बोया न जाये,

न जाने कितने भुखमरी मे जी रहे,

गोदामों में अनाज सड़ता जाये,

भूख से सिसकते बच्चों के एक दाना भी नहीं पेट भर में,

हाँ, आज़ाद तो है हम, बस अपनी नज़र में।


कौन संभालेगा उस आज़ाद वतन को,

हर पल जो गैरों की भेंट चढ़ता जाए,

देश की फिकर करे तो कौन करे?

आज का इन्सान अपनो की बली चढ़ाए,

देश की मिट्टी भी सौ दर्द लेकर अपने जिगर में,

पूछती है, आज़ाद तो है हम,

पर किसकी नज़र में ?


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