आज नहीं तो कब
आज नहीं तो कब
आज नहीं तो कब
झरते जा रहे हैं पल
समय की छलनी से
खर्चती जा रही है
समय की गुल्लक
कब सोचोगी खुद के लिए
कब महकोगी खुद के लिए
जीते मरते सबके लिए
खटते-झटते घर के लिए
बीत रहे हैं दिन तिल-तिल
छूट रहे हैं ये पल-छिन
कब जियोगी खुद के लिए
कब सजोगी खुद के लिए
बारिश की चिंता में डूबी
धूप को तुम कब सहलाओगी
समय की इस तश्तरी से
दो पल कब तुम चुन पाओगी
कब हँसोगी खुद के लिए
कब गाओगी खुद के लिए
आज नहीं तो बोलो कब
कब जियोगी खुद के लिए
