आज की बात
आज की बात
ये आज की है बात कल न की जाए
जो रंजो-ओ-गम फैलाएं आज ही जाए
आने वाले है नए लोग कल की दुनिया में
उनके खातिर ये दिवानगी खत्म की जाए
फैलता हर तरफ दुश्वार दावानल देखो
बन गए लोग जंगली, जंगली कहा जाए
सभ्यता और संस्कृति की बात करते हैं
सच बतला दो तो जुबां नोच दी जाए
सांप हटवाना चाहते थे बागीचे से लोग
हुक्म आया चंदन ही कटवा दी जाए
उठ रही आवाज अगर हुक्मरानों के खिलाफ
बना मजार क्यों न वो गूंगी की जाए।