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आज जाने की ज़िद न करो...

आज जाने की ज़िद न करो...

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1. यह मेरी डायरी का आखिरी पन्ना है

पलटने से पहले क्यों हिचकती हूँ

पता नहीं !

जब फरीदा जी कहतीं हैं

कि आज जाने की ज़िद न करो

मैं यह सोचकर रो देती हूँ

कि अनेकों बार

जाना ज़िद नहीं, बस मजबूरी थी...।


2. मेरी मैथ्स नोटबुक के जिस आखिरी पन्ने पर

प्यारी टीचर ने

अपने हस्ताक्षर किए थे

उसे देखकर मैं आज भी दुखी होती हूँ,

क्यों ? - यह पता नहीं !


3. अक्का अपने प्रेमी को जो लंबी - लंबी चिट्ठियां लिखतीं थीं

उनके पहले पन्ने पर जितना प्रेम था

आखिरी पर उतनी ही घृणा

फिर भी घृणा का होना अजीब बात नहीं थी

अजीब बात यह थी कि

घृणा की मौजूदगी के बाद भी

प्रेम अनुपस्थित न था !


4. मुझे आखिरी पन्नों से डर लगता है

यह जानते हुए भी कि

ज़िंदगी में आखिरी पन्ने बहुत बार आते हैं

हर बार उतनी ही पीड़ा

हर बार उतनी ही निराशा

और हर बार वही आस

कि हर आखिरी पन्ने के बाद

कहीं कोई पहला पन्ना मौजूद मिलेगा

हर अंत के बाद किसी आरंभ का होना

इस दुनिया की कुछ बेहद प्यारी बातों में से एक है...।




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