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KAVY KUSUM SAHITYA

Abstract

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KAVY KUSUM SAHITYA

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आईना

आईना

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आईने ने किया सवाल क्यों देखती हो

हर सुबह मुझमे चेहरा अपना।

हुस्न की मल्लिका के जज्बे का जवाब।              


देखती हूँ तुझमे हर सुबह चेहरा अपना कौन है

दुनिया में जो निहारेगा तेरे सिवा चेहरा मेरा।

किसके इंतज़ार में खोई रहती कोइ तो होगा मुकद्दर अपना।

सजती हूँ सवरती हूँ तुझ में खुद को देखती खुदा से पूछती हूँ 

मेरी मुहब्बत कि चाहत का फरिश्ता है कहाँ।


आईने में देखती हूँ हर सुबह सूरत

दिल कि चाहतों का बया हाल जानता है आईना।         

कभी शर्म हया से बाहों में छुपा लेती चेहरा अपना

खोजती है नज़र जिंदगी का हम सफ़र अपना।       


दुनिया का है कहना जीनत है जन्नत कि जहाँ में 

मुश्किल में तेरा हमसफर मिलाना

मेरी खूबसूरत नादानी गुजर जायेगी इंतज़ार में।    

अश्कों के सबनम से खाक हो

जायेगी क्या यही नसीब है अपना                 


हर सुबह कहता है साजिदा आईना ।               

बहारे आएँगी फूल बरसाएंगी होगा

जब तेरे महबूब का आना ।।

वो भी आहें भरता होगा कहीं

ख्वाबों की सहजादि कि तलाश में।                   


 खुदा कि चाहत है तेरा हुश्न बन जाए जहाँ में अपसांना  

 वफ़ा कि मोहब्बत का दुनिया में

मुश्किल होता है मिल पाना ।

चाहत के इश्क में पड़ते है कई दौर से गुजरना।         


इश्क आसान नहीं जिसका हुश्न की

हसरत से हो मिल जाना ।।

कभी तमन्नाओं का गुलशन बेवाफाई के गम          

 कभी आंसुओ में पड़ता है डूब् जाना               


हुश्न तो रोशन शमां जिसकी तपिस

में जल जाता है परवाना।

 हुश्न तो साकी है, मैखाने का है पैमाना।                


बिन पिए ही कितने बहक कितने ही गाये जाते है

जहाँ उनका अफसाना        

तू हुश्न का हद गुरुर है जाने जाना जुनून के

जज्बात का आईना ही होगा तेरा दीवाना।


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