आघात
आघात
माना था जिसको मीत अपना
दिल से चाहा उसको प्रीत अपना
मित्रता को समझा रूप प्रेम का
सुर दोस्ती से सजे गीत अपना
मित्रता को वो पूरे दिल से निभाती
दूसरों के वार से उसको बचाती
मालूम ना था उसे उसकी चालाकी
वो पीठ पे खंजर अपना चलाती
बचा कर उसने उसको
अपने हाथ को, लहूलुहान किया
पर उसका दिल वो समझ ना पायी
अपनी मित्रता पर वार करके
धोखे से उसने पीठ पर वार किया
अपनी मित्रता को तार-तार किया
करते आघात रिश्तों पर
मिलते हैं कई लोग यहाँ
ओढ़ चेहरे पे अच्छाई का मुखौटा
मन में नफरत और ईर्ष्या रखकर
होते हैं कई लोग यहाँ।
