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वो पहला प्यार

वो पहला प्यार

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बात 2013 की है, मैं और वो साथ पढ़ते थे, मैं कम्पटीशन की तैयारी करता था,और वो कम्पटीशन के साथ-साथ पोलटेक्निक भी कर रही थी, महिला पोलटेक्निक फुलवारी शरीफ से।

दोस्ती तो नही थी पर वो मुझे अच्छी लगती थी, मैं अपना शत प्रतिशत क्लास ऑवर में देता था, क्योंकि कभी-कभी वो कॉलेज आ जाती तो क्लास नहीं आ पाती थी, और मैं उसे अपनी कॉपी दे देता था, मुझे बड़ा सुकून मिलता था, मैं क्लास में रेगुलर रहता था, अक्सर मैं क्लास समय से पहले पहुँच जाता था, और उसकी राह तकते रहता था, जबतक नही आ जाती पता नही अजीब सा लगता था

उसे आते देख अनायास ही होठों पे मुस्कान आ जाती थी, मैं पूरी तरह खुश हो जाता था, ये सिलसिला यूँही चलता रहा, मैं खुश था, शायद वो भी।

उसे देखने मात्र से मुझे एक सकारात्मक ऊर्जा मिलती थी, मैं हमेशा आगे बैठता था, क्योंकि वो भी आगे की बेंच पर ही बैठती थी, बचपन का सबसे कमजोर विषय गणित कब सुधर गया पता ही न चला। जो विषय मुझे नीरस सा लगता था, उसमें ही अब ज्यादा मन लगने लगा था, वजह वो थी,

2 घण्टे का क्लास कब खत्म हो जाता पता ही नही चलता।

सचमुच ऐसा लगता था मानो क्लास खत्म हो ही ना, 6 बजते ही क्लास खत्म और फिर बिछड़न, वो मीठापुर की तरफ और मै अनीसाबाद की तरफ,क्योंकि हमारा क्लास सिपारा में था।

सर भी बहुत अच्छा पढ़ाते थे, पूरा मैथ चुटकुलों, कहानियों के साथ खत्म कर दिए, वाकई बहुत दिलचस्प शिक्षक थे।

हमारी कहानी कोई मोड़ नही ले रही थी, मैं सोचता था शायद मेरे दिल की बात कोई न जानता है, पर मेरे सारे दोस्तों को मेरे दिल की बात पता थी।

राजवीर, राकेश और वीरेन्द्र ये मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे, राजवीर जी थोड़े senior थे, पर दिल के बहुत अच्छे थे,वे भी मीठापुर की तरफ से ही आते थे।

उन्होंने एक दिन मुझसे पूछा अभिषेक जी जो भी दिल मे है उससे कह डालिये, पर मुझे साहस न हुआ,

पर राजवीर जी कहाँ मानने वाले थे, उन्होंने जाते वक्त एक दिन उससे मेरे दिल के सारे जज्बातों को कह डाला।

उन्होंने कहा अभिषेक तुम्हें पसन्द करता है, वो थोड़ा घबरा गई, उनसे बोली वो लड़का अच्छा है पर अभी दिल का बच्चा है। उन्होंने बहुत कोशिश की पर बात न बनी, कल आकर उन्होंने मुझे सारी बातें बताई।

मुझे बुरा लगा, पर मैं उसकी मर्ज़ी के विरुद्ध कोई भी फैसला करना उचित नही समझा।

कुछ दिन तक तो वो मुझे क्लास में देखती भी नही, मैं भी उसकी तरफ नही देखता मुझे बुरा लग रहा था, शायद मैने एक दोस्त खो दिया था, पर कुछ दिन बाद सब नार्मल हो गया,अब धीरे-धीरे बातचीत शुरू हो गयी।

दोस्तों ने मुझे बहुत उकसाया की एकबार खुद से बात करके देख, पर मैं फिर से उसे खोना नही चाहता था, सो मैने अपने जज्बातों को अल्फाज़ों तक न आने दिया।

दोस्तों ने तो किसी तरह रजिस्टर से उसका नंबर तक ढूँढ कर मुझे दे दिया।

उन यारों की आज भी बहुत याद आती है। हर परिस्थिति में मेरे प्रति आप लोगों के समर्पण को आजाद सलाम करता है।

कुछ दिन बाद अचानक से उसका क्लास आना बंद हो गया। दोस्तों ने जो नंबर दिया था उसपर हिम्मत करके कॉल किया, उसकी माँ फोन रिसीव की मैने बोला मैं क्लास से बात कर रहा हूँ, साची क्लास क्यों नही आ रही,

पता चला उसका पोलटेक्निक फाइनल हो गया, और वो डेल्ही चली गयी, मन बहुत उदास हुआ,और फिर तो क्लास फॉर्मेलिटी बनकर रह गया। सर ने अडवांस मैथ शुरु किया। पर मेरा तो क्लास मानो खत्म हो गया था। यही वजह है कि आज तक मेरा अडवांस मैथ पूरा कम्पलीट नही हो पाया। और इसकी वजह सिर्फ तुम हो, कोई दोस्त इस तरह छोड़कर थोड़े ना जाता है। पता न अभी तुम कहाँ हो, शायद तुम्हें पता भी नही की मैं तुम्हें आज भी बहुत याद करता हूँ। उम्मीद है जीवन की किसी न किसी मोड़ पे तुमसे सामना ज़रूर होगा।

मुझे इंतज़ार रहेगा...आजाद यही प्रार्थना करता है कि तुम जहाँ भी रहो खुश रहो।

I miss u

तुम्हें अपना दोस्त समझने वाला-आजाद। कभी जो वक्त हो तो, लौट आना उन गलियों में, आजाद अभी भी, तेरी राह तकता है। मन में कभी बुरा न सोचा तेरे वास्ते, आजाद आज भी तुझे, दिल से प्यार करता है। और एक वादा मैं कभी भी तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने की चेष्टा तक नहीं कर सकता। ये आजाद तुम्हें कब का आज़ाद कर चुका है। हर किसी के जीवन में ऐसी घटनाएँ घटती है, मंज़िल के लिए सब कुछ क़ुर्बान करना पड़ता है, सही गलत कुछ नही देखा जाता। मंज़िल पाने के लिए सब जायज़ है। पहली प्राथमिकता सफल जिंदगी,प्यार नहीं। जरा संभल कर साथियों डगर थोड़ी कठिन है।


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