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Prasun Upadhyay

Inspirational

5.0  

Prasun Upadhyay

Inspirational

Professor's House

Professor's House

7 mins
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घर की बेल लगातार बजे जा रही थी, गहरी नींद से उठने की तो दूर, हिलने तक का मन नहीं कर रहा था। बगल के बेड से सोते -सोते अभय ने कहा ओम जा देख बे कौन है ? बालकनी से जा के पूछा तो सन्नाटे में आवाज़ गुंज गई, और जवाब मिलते ही भागा हुआ आया बोला प्रोफेसर आ गया।
सब ऐसे जागे की सोये ही नहीं थे, दो मिनट के अंदर फैसला हुआ की चिंटू नीचे जायेंगे गेट खोलनें। मैंने कहा ये हर बार रात को ही क्यों आता है, कुछ घपलेबाजी तो नहीं क्योंकि दुनिया के सारे गलत काम रात को ही होते हैं, और सोते हुए इंसान को जगाने से बड़ा पाप तो कुछ हो ही नहीं सकता और यहां तो पांच इंसानों की नींद का सवाल है। खैर हमें पता था की सोने से बड़ा सुख और कहीं नहीं, सो हमने और नींद बर्बाद नही की और सब फिर से सो गये। सुबह-सुबह ऑफीस जाने के लिए मैं नीचे उतरा तो प्रोफेसर के दर्शन हो गये।
गुड मॉर्निंग सर का जवाब मिला, इस महीने रेंट क्लियर कर रहे हो ना? इतना सुनना था कि लगा रेंट बाकी न हो पिछले जनम का कर्जा हो इस प्रोफेसर का, ऑफीस में भी चिंता इसी बात की सता रही थी की जब तक प्रोफेसर हैं, CHILL करके घर में नहीं रह सकते।
प्रोफेसर हमारा मकान मालिक, 65 की उम्र में भी टकाटक जवान दिखने का शौक, हर काम खुद से करने की आदत। दिल से नेक पर एक-एक पाई के लिए सख्त। कभी कभी लगता है पैसा ही सबकुछ हो इनके लिए। आज भी चमचमाती स्कुटर से चलते हैं और मुस्कुराना तो सिखा ही न हो शायद। भारत के दूसरे सबसे बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर रह चुके हैं और एक प्राइवेट कॉलेज के डाइरेक्टर हैं। नाम के आगे DR. लगता है इनके, खौफ़ तो इतना होगा इनके कॉलेज में इनका, की लड़के- लड़कियां हिलने से भी कतराते होंगे इनके सामने। और यही खासियत है शायद, की सुख सुविधाओं और विलासिता से भरपूर ये चार मंजिला घर उनका है। कुबेर का खजाना नहीं है इनके पास फिर भी दिन में भी गेट में दो-दो ताले लगाओ। उन सवालों का भी जवाब दो जिनसे 7000-8000 किलोमीटर दूर का भी रिश्ता नहीं हो। 
Proffesor's house : 
हमारा ठिकाना और कई अनकही कहानियों का अड्डा। ये कहने को प्रोफेसर साहब का घर है पर राज कहें तो पिछले तीन सालों से हमारा ही है, किराया महंगा होने की वजह से कोई आया नहीं और जो आया उसे हमने किरायेदार बनने ना दिया, वरना हमारी स्वतंत्रता का हनन हो जाता। प्रोफेसर के आने के बाद सब मुझे बहुत याद करने लगते हैं क्योंकि उन्हें और उनके सवालों को, मैं बिल्कुल वैसे ही सुनता हूं जैसे कोई खूबसूरत लड़की बोलते वक्त अपने होंठों से अपना लिपस्टिक ठीक करती हो, और मैं उसको देखे जा रहा ! ऐसा महसूस करना पड़ता है जनाब वरना अगले दो मिनट में घर खाली करना पड़े और हम रोड़ पर आ जायें, उनसे बदतमीज़ी करने की वजह से। 

हम सबकी अपनी खासियत है मैं प्यार से सबपे हुकूमत करता हूं, अभय (RJ.ABHAY) चिकन खाने के लिए कुछ भी कर सकता है, कहीं भी जा सकता है, चिंटू किसी ज़माने में शराफ़त का पुतला हुआ करते था और आये हर दिन इन्हें किसी से प्यार हो जाता है। ओम जिसे भावनाओं में बहने में ठीक उतना ही वक्त लगता है जितना प्रोफेसर को हमें बिना बात के झाड़ने में।
और मेरे दुलारे मामाजी, जिनके लिए सोने से बड़ा काम कुछ नहीं है। बस नाम के "चंचल" है पर आलस की दुकान साथ लेकर चलते हैं। 

ओम जिसका एक नाम जज़्बाती भी है उसको अभय ने कहा सुन बे चाय पीलायेगा, कल तो मामाजी ने दिल पर ले लिया था, कि मैंने कल उनकी चाय को बुरा कैसे कह दिया ! अब उन्हें गोलगप्पे खिलाने पड़ेंगे चाय पीने के लिए, 
ओम ने कहा बस अभय भैया दो मिनट, मैगी के बाद इसकी चाय ही इतनी जल्दी बनती है, और इसके हाथों की चाय हमारी आलस भगाने की दवा है। अभय को चिढ़ाना दुनिया का सबसे आसान काम है बस उसके शाहरूख खान की थोड़ी बुराई कर दो और चाय पीते हुए मामाजी ने यही किया और अब तो इन दोनों का बदलापुर पूरे दिन चलने वाला था, जिसमें आग में घी का काम किया मामाजी के इस डाइलॉग ने। मामाजी - अभय ज़रा अपना चाइनीज़ फोन देना, बस अब तो गृह युद्ध के लिए हम सब तैयार थे।
अभय नें जेब में हाथ डाला 5 का एक सिक्का निकाला और पूरे जोर से मामाजी के हथेली में देते  हुए कहा, 
अभय- पी.सी.ओ खोज कर फोन कर लीजिए जिसको करना हो, और हां मिस्टर मामा this is not just a phone ok this is I-PHONE ! 
ओम तो बस कांच के ग्लास पर नज़रे गड़ाये हुए था, कि कहीं गुस्से में उसे पटक ना दे क्योंकि ये दोनों तो निकल लेंगे और गृहयुद्ध का मलबा उसे साफ़ करना पड़ेगा।
प्रोफेसर-  रेंट कब क्लियर करोगे? हर बार का ऐसा ही रहता है तुमलोग का, अगली बार दे देंगे, A/C में डाल देंगे, मतलब तुम्हारे रेंट के लिए बाकी काम छोड़ कर यहीं रहें हम? 
मैं - नहीं सर आप जाइए मैं भेज दूंगा आपको तो, इस महीने तक का पूरा पैसा !
प्रोफेसर बालकनी की तरफ जाते हुए- सिढिंया साफ़ रखा करो और जूते किनारे रखो मुझे गिराने के लिए रखा है क्या आते जाते उलझ गया तो ? 

मैनें सोचा घर में रहते सब हैं, काण्ड सब करते हैं तो प्रोफेसर साहब का आशीर्वाद मैं अकेले क्यों लूं आख़िरकार हिस्सेदार हैं सब, फिर तो बस नींद हराम करना शुरू किया सबका और इज्जत की खातिर आना ही था सबको। उँची आवाज़ मे पुकारा मैने ओम ओम, मामाजी ! 
मुस्कुराते हुए भाई साहब आये और एक-एक कर सब आते तब तक बालकनी से प्रोफेसर साहब की आवाज़ ही आ (गुस्से में)
इन खिड़कीयों के कांच में कौन चेहरा देख रहा था?
कैसे टूटा ये?
मामाजी - सर पहले से ही टूटा था
प्रोफेसर - गिन कर गया था मैं पिछली बार, सिर्फ एक खिड़की का आधा कांच नहीं था और अभी 7 खिड़कीयों के नहीं हैं।
मामाजी - आंधी में टूट गया होगा सर !
प्रोफेसर - होगा मतलब? आपको पता नहीं कैसे टूटा?
मामाजी - जानकर थोड़ी ना तोड़ेगा कोई सर !
प्रोफेसर - मान लीजिए की जो टूट कर लटक रहा था, वो सुसाइड कर लिया गिरकर ! पर बाकी के 6 कैसे टूटे? वो तो सुसाइड नहीं कर सकते ना?

अब ऐसी स्थिति में हम असमंजस में थें की हंस ले ज़रा सा क्यूंकी हँसी रोकनी बड़ी मुश्किल हो रही थी, पर डर था कि हम हंसे और बस टूटी हुई 6 खिडकियों से प्रोफेसर का गुस्सा अंदर आ जाएगा। अपने अरमानों पर हमनें काबू पाया तब तक फिर
प्रोफेसर -
थोड़ा ध्यान दिया कीजिए आप लोग और रेंट बाकी का जल्दी दीजिए। आज शाम में कितना दे रहे हो?
मैं - सर दो-तीन महीने का क्लियर कर देंगे।
जैसे ही प्रोफेसर नीचे गये और बस मेरा पारा हाई, सबकी तरफ़ मुड़ते हुए ! आज शाम तक सब कोई अपना हिसाब क्लियर करे वरना मैं नहीं सुनने वाला इसके अनमोल वचन, वो भी आप लोगों की वजह से।
चिंटू - शाम में दे दिया जाएगा प्रसून भैया !
तब तक ओम ने मामाजी को कुछ इशारा किया और बालकनी में चले गये दोनों।
मैं समझ गया कि वक्त हो गया है, मैं भी गया उनके पीछे से और सामने की छत पर भाभी जी को टहलते हमसब देखने लगे, जो हर शाम के सबके रुटीन में तय था। मैं, मामाजी, ओम और अब चिंटू भी। कौन सा रेंट, कौन प्रोफेसर अब किसी को कुछ याद नहीं था।

प्रोफेसर ने जो ज़ख़्म दिये थे हमारे आत्‍मसम्मान पर उसपर इस नयन सुख प्राप्ति ने मरहम का काम किया।
और भाभी जी का सौंदर्य दर्शन करने के बाद जब तक की वो ओझल ना हो गयी, हम सब कमरे में आये और 
अभय नें कहा- चिकन बनाते हैं रात को और प्रसून भाई के लिये पनीर।
मैं - क्यों तुम तो बालकनी में भी नहीं थे हमारे साथ फिर कौन सी खुशी मिल गई।
अभय - प्रोफेसर कल सुबह सुबह जा रहा है
मैं - (लगभग खुशी के मारे पागल होते हुए) किसने कहा ? 
अभय - खुद मैंने कल के डेट का टिकट देखा है भाई, जब वो यह लिख रहे थे कि हमलोग, महाशय का क्या-क्या सामान यूज़ कर रहे हैं।
और बस मानों कटरीना कैफ़ के तरफ़ से डिनर का इन्विटेशन मिल गया हो सबको। इस खुशी के पागलपन में कौन क्या कर रहा था, कह रहा था, नहीं पता पर खुश सब थे। 
शाम मे कुछ रेंट देने के बाद और प्रोफेसर साहब के अनमोल वचन, फिर सुनने के बाद सब डिनर कर रहे थे कि चिंटू ने कहा !
चिंटू - कल तो आपलोगों का सेक्सी सनडे है, जम के सोइयेगा 10 बजे तक, बेचारे अभी और कुछ कहते की बेल फिर बज उठा और हम एक दूसरे को देखकर इशारों में पूछने लगे अब कौन?
मैंने दरवाजा खोला तो मुस्कुराता हुआ happy Sunday सामने खड़ा था। 


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