जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
लोगों की भीड़ लगी हुई थी,जिसमें से एक औरत और दो लड़कियाँ रो रही थी और वहाँ पर खड़ी भीड़ उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रही थी.और यह कह कर चुप करा रही थी की भगवान की यही मर्ज़ी थी इसमे कोई कुछ नहीं कर सकता.आईये इस कहानी के आगे बढ़ने से पहले आपको उस पहलू पर ले जाता हूँ जहाँ से इसकी शुरुआत हुई. हुआ यूँ की शर्मा जी का एकलौता लड़का कार्तिक जो की अभी पूरे 13 साल का है चुकी शर्मा जी बैंक में एक मैनेजर की पोस्ट पर नौकरी करते है तो इस कारण से उनके घर में किसी भी चीज़ की कमी नहीं है दो बेटियाँ अभी दसवीं के परीक्षा की तैयारी कर रही है.शर्मा जी ने बेटे कार्तिक को इतने लाड़ से पाला है की उसके एक कहने पर उसकी हर एक माँग पूरी कर दी जाती है और बेटा कार्तिक भी इस बात पर अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली महसूस करता है.हाँ हो भी क्यों ना ! पिताजी बैंक में मैनेजर है.उस दिन कार्तिक जो की अभी 13 साल का है उसने पिताजी से motercycle की माँग करता है और शर्मा जी ने भी बिना सोचे समझे अपने बेटे को motercycle दिला दी .शर्मा जी ने एक पिता होने के नाते अपनी ड्यूटी निभा दी पर उन्होंने यह नहीं सोचा की जिस motercycle को चलाने के लिए हमारा संविधान 16 साल की आयु निर्धारित किया है उस चीज को यह दरकिनार कैसे कर सकते है! बेटे के प्यार में उन्होंने उसे motercycle दिला दिया और उसे चलाने की भी आज़ादी दे दी.अब जवान बेटा नया खून वो MOTERCYCLE को AEROPLANE समझ कर चलाने लगा वो रोज़ घर से मार्केट जाता और घर आ जाता और भी कहीं पे अगर जाना होता तो MOTERCYCLE ले जाता और शर्मा जी भी बिना रोक टोक के यह गर्व करते की उनका यह इकलौता बेटा जो की पूरे महल्ले में एक अकेला BIKE चलाने वाला सबसे कम उम्र का लड़का है अब क्या था उस दिन की बात है शाम के 6 बज रहे थे और कार्तिक रोज की तरह पूरी तेजी से BIKE चला कर G.T ROAD से आ रहा था रोज की तरह पूरी रफ़्तार में. अब क्या था उसके उलट एक नौजवान जो की आराम से अपनी BIKE चला कर आ रहा था की अचानक कार्तिक का बैलेंस बिगड़ा और वह उस नवयुवक की और बढ़ा अब उस नवयुवक ने उस से बचने और अपने आप को बचाने के ख़ातिर अपना आपा खो दिया और उसी दरमियाँ जा रहे ट्रक से उसकी BIKE का टक्कर हो जाती है सर में गंभीर चोट आने के कारण वो तो वहीँं पे ढेर हो जाता है .कार्तिक भी चार फूट दूर जा कर गिरता है .खैर कार्तिक को तो मामूली सी चोट आती है पर उस नवयुवक की जान चली जाती है.वो जो की अपने परिवार का एक मात्र सहारा था अब इस दुनिया में नहीं रहा.बात यही पे ख़तम नहीं होती बात उस नज़रिये पे आती है की लोग उन चीज़ों को करने में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाते है जो की कानून ने रोका है उन्हें इन बातों का ध्यान क्यों नहीं आता की अगर कानून ने अगर 16 साल से कम आयु वाले इंसान को किसी भी तरह का वाहन चलाने से मना कर रही है तो इसमें उनका ही भला है लोग अपनी झूठी शान के ख़ातिर यह क्यों भूल जाते है की दिखावा उन चीजों का होना चाहिए जिस से देश और दुनिया का भला हो ना की उन चीज़ों का जिस से अपना और दूसरों का नुकसान हो.आज उस नौजवान की जगह पर शर्मा जी का लड़का भी हो सकता था ?.बात गौर फरमाने की है आज तो शर्मा जी को यह बात समझ आ गई है और उन्हें अपने लड़के को दी हुई आज़ादी पर पछतावा हो रहा है पर बात उन हजारों लाखों ऐसे माता पिता की है जो अपने बच्चे को सुख और सुविधा देने के खातिर उनका और दूसरों का भविष्य अधर में डाल देते है.तो इस कहानी को आप लोग पर ही छोड कर जा रहा हूँ की 16 साल से कम उम्र के बच्चे को वाहन चलाने देना क्या ठीक है? क्या हमे इस बात पर बल नहीं देना चाहिए की हम अपने बच्चे को सही क्या है और गलत क्या है यह सिखाऐं ना की जो वो माँगे दे दें .साथ में यह भी ख़याल रहे खुशियाँ अपने बच्चे को MOTERCYCLE ख़रीद कर देने से नहीं बल्कि उनके साथ वक़्त बिताने से मिलती है उन्हें समझने और समझाने से मिलती है.सोचने का विषय है जरुर सोचियेगा क्योंकि यह जिंदगी बहुत कीमती है .अपना भी और दूसरों का भी.क्योंकि ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा.