कांजीवरम साड़ी
कांजीवरम साड़ी
रीता अपने पति मोहन से बोली "ए जी सुनते हो? कल रात देवी माता मेरी सपने में आयी थी"
क्यों? देवी माँ को और काम नहीं है क्या, जो तुम्हारे सपने में आयी? मोहन बोला।
"आप तो बिना सुने कुछ भी बोल देते हैं। बहुत दिन पहले मैंने देवी माँ से आप के प्रमोशन के लिए मन्नत मांगी थी। इसीलिए मुझे एक पूजा करनी है। पूजा के लिए एक हज़ार और पूजा में पहनने के लिए एक कांजीवरम साड़ी के लिए पांच हज़ार रूपए मुझे दीजिये। यह सब मैं आप के लिए ही कर रही हूँ।"
मोहन को समझने मैं वक़्त लगा की नयी कांजीवरम साड़ी के लिए यह सब चक्कर चल रहा है। शांत स्वर से उसने जवाब दिया "अच्छा हुआ, तुम्हारे सपने में आकर देवी माँ ने मुझे मेरी मन्नत के बारे में भी याद दिला दिया। मेरे प्रमोशन के लिए मैंने भी मन्नत माँगी थी। माता के मंदिर को नीचे से ऊपर पैदल जाने के लिए ९९९ सीढियाँ अपने हाथ से तुमको धोनी है और हम दोनों को अपने-अपने सर मुंडवा कर सात बार नीचे लेटे मंदिर के प्रदिखिन करना पड़ेगा। पूजा कब करनी है पहले तारीख ठीक है, साडी भी ले लेंगे।"
पति के बात सुन कर रीता बोली "रहने दो, पहले आपका प्रमोशन होने दो, तब पूजा करेंगे"
मोहन मन ही मन मुस्कुराने लगा, वह निश्चिन्त था कि कम से कम अगले पांच साल के लिए उसे कांजीवरम साडी की चिंता करने का ज़रूरत नहीं है।