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shuddhatam jain

Inspirational

5.0  

shuddhatam jain

Inspirational

उन्नत मन: समुन्नत भाग्य

उन्नत मन: समुन्नत भाग्य

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बरसात की ऋतु थी। एक गधा रास्ते से जा रहा था। उसने देखा कि चारों ओर हरी-हरी घास है। उसने पूर्व में देखा तो दूर-दूर तक हरी घास दिखाई दी। उत्तर में देखा तो दूर तक हरी घास, पश्चिम में देखा तो दूर तक हरी-हरी घास और दक्षिण में देखा तो भी दूर तक हरी-हरी घास। उसने सोचा कि इतनी सारी घास को खाने में मुझे कितना समय लगेगा ? इस घास को मैं कैसे खा पाऊंगा ? इतनी घास कितने दिनों में खाई जा सकेगी। यह सोचते-सोचते उसके सिर में दर्द हो गया। रात को ठीक से वह सो न सका और उदास रहने लगा। धीरे-धीरे वह बीमार हो गया। उसका मॅुंह उतर गया और वह कुछ ही दिनों में बहुत कमजोर हो गया। 

सब दिन एक समान नहीं रहते। ग्रीष्मकाल के वैशाख माह में जब सारी घास सूख गई और चारों ओर खाली मैदान ही मैदान नजर आने लगे। तब गधे ने उन मैदानों की ओर नजरें दौड़ाई और सोचा कि अहो! मैंने सारी घास खा ली है। सब घास खत्म हो चुकी है। सारी घास खाकर मैं बहुत मोटा हो गया हूॅं। यही सोचते-सोचते वह खुश रहने लगा। उसकी हालत में सुधार होना शुरू हो चुका था। अब वह एक तंदुरूस्त और खुशमिजाजी गधा बन चुका था। खुश रहने से खुशी स्वयं दौड़ी चली आती है। वास्तव में अब वह मोटा भी हो गया था। वैशाख माह में गधे के खुश रहने से गधे को ‘वैशाखनन्दन’ भी कहते हैं।

सच ही है ‘‘उन्नतं मानसं यस्य, भाग्यं तस्य समुन्नतम्’’ अर्थात् जिसका मनोबल उच्च है उसका भाग्य भी स्वयमेव उन्नत हो जाता है, अतः अपने मन को सकारात्मक सोच से मजबूत बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। मन में कुण्ठा, अन्तद्र्वन्द्व, नकारात्मक विचारों को कभी भी स्थान नहीं देना चाहिए। 


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