टीस
टीस
उन्तीस वर्षीय अविवाहिता पूजा समय की पाबंद परफेक्शनिस्ट तथा मददगार थी। पूजा शहर के नामचीन विद्यालय अग्रवाल मॉडल स्कूल की शिक्षिका थी। शोभा उस विद्यालय में नयी लगी थी। शोभा, पूजा और बेंजिल ये तीनों शिक्षिकाएं मिलकर ज्यूनियर व सीनियर के बच्चों को एक बड़े से हॉल में चालीस-चालीस के समूह में बँटे शानदार छोटे-छोटे प्यारे फर्निचर व बड़े से बोर्ड के साथ तथाकथित ए, बी, सी के वर्ग को पढ़ाते थे। ठेठ भारतीय नाम के इस अंग्रेजी विद्यालय में शोभा ने एक अजीब सी बात पायी, शिक्षक के रुप में अधिकांश क्रि्श्चन महिलाएं थी वो भी अविवाहित।
इतनी प्रतियोगिता तो उसने अपने बीस साल के करियर में कभी नहीं देखी। यहाँ रोज ही स्टेट या नेशनल लेवल के कॉंप्टिशन से हालात रहते। मामूली सी गलती भी क्षम्य नहीं थी, हल जानते हुए भी बिना अपमान का घूँट पिलाये चैन की साँस ना लेने देते। गलती से किसी ने यदि उपस्थित बच्चे के लिए पी से ए लिख दिया तो यह जानते हुए भी कि सिर्फ नीचे की थोड़ी सी बड़ी लाइन ही मिटानी है, शिक्षक की कॉर्डिनेटर से लेकर प्रिंसिपल तक पेशी हो जाती। वाईटनर व रबर का इस्तेमाल करने से पहले वह मानसिक रूप से कहाँ उपस्थित था ;यह बताना पड़ता और आधे घंटे का अपमानित लैक्चर सुनने के बाद उसमें वही सुधार किया जाता जो अपेक्षित रहता।
विद्यालय में प्रवेश करते ही शिक्षक मात्र एक-दूसरे से औपचारिक संबोधन से ही पेश आते यहाँ तक कि स्टेशन आते ही एक-दूसरे से दूरी बना लेते, कहीं साथ में चलते - बात करते सर ने देख लिया तो क्या कहेगें ? वे एक- दूसरे से सालों परिचित होते हुए भी सामान्य सी मुस्कान देने से भी डरते थे। रिसेस में भी सभी अपना-अपना डिब्बा खाते। शेयरिंग नाम की कोई बात नहीं थी। गजब का खौफनाक माहौल बना रखा था; वहां के प्रिंसिपल उमाशंकर ओझा ने। सुबह सभी शिक्षकों की डेली प्लानिंग बुक सर के टेबल पर पहुंच जातीं। किसी भी कक्षा में प्री - प्राईमरी से लेकर ज्यूनियर कॉलेज तक अगर संबंधित तासिका में दैनिकी के अनुसार कार्य नहीं हो रहा होता तो बच्चों के सामने ही शिक्षक की खैर नहीं।
गलती से कोई अध्यापक बैठे मिल जाता तो उसे ऐसा लगता मानों वह चोरी करते रंगे हाथों पकड़ा गया है। कोई भी शिक्षक विश्वास करने लायक नहीं था। सभी एक-दूसरे की कमियाँ पकड़ने व सर के सामने खुद को अच्छा बताने की ताक पर रहते। सफाई वालों को भी आदेश था बैठना गुनाह है। हर वक्त हाथ में फटका या झाड़ू लिए सभी अपने -अपने हिस्से की सफाई में लगे रहते।
यह विद्यालय अपने उत्तम प्रबंधन के लिए बाहर बेहद प्रचलित था परंतु भीतर से इसकी मूल्यहीनता का पार पा सकना असंभव था। नयी-नयी नौकरी लगी शोभा को विद्यालय के हालात भांपने में जरा भी देर नहीं लगी। इससे पहले वह जिस विद्यालय में थी वहाँ उसे स्वच्छंद आसमान में उड़ते परिन्दे की अनुभूति होती थी और यहाँ पर कटे परिंदे की भाँति। सब कुछ अच्छा होते हुए भी उसे वह विद्यालय छोड़ना पड़ा था क्योंकि वह मान्यता प्राप्त नहीं था। इस विद्यालय की एक विशेषता थी कि यहां सभी को अपने हिस्से की पूरी पगार मिल जाती इसीलिए यहाँ सभी अपनी-अपनी नौकरी बचाने के लिए एक-दूसरे का गला काटने पर भी आमदा रहते। बड़ी सफाई से शिक्षक कही जाने वाली यह प्रजाति समय-समय पर झूठ व फरेब का सहारा लेकर अपना परचम लहराने का कोई मौका नहीं छोड़ती।
शोभा अपने आपको इस माहौल में ढालने की कोशिश कर रही थी। एक पूजा ही थी जिसमें उसे इंसानियत की झलक दिखी। विद्यालय के माहौल को समझाने मे उसने कई हद तक शोभा की मदत भी की।
आज शोभा को विद्यालय में लगे पूरा एक महीना हो गया था। यहाँ उसे हर दिन इंसान का नया मुखौटा देखने व कुछ ऐसा सीखने मिलता जिसके लिए उसकी अंतर आत्मा तैयार नहीं होती। हमेशा प्रिंसिपल सर जब भी बुलाते तीनों प्री - प्राईमरी के शिक्षकों को एक साथ बुलाते और कुछ भी पूछते, तीनों के जवाब में मामूली अंतर आने पर भी उन्हें अपनी बात साबित करनी पड़ती। एक बार प्रिंसिपल सर ने शोभा से बाई को आवाज देने कहा वह बाहर गई उसने कहा," मौसी सर बुला रहे हैं आपको।" मौसी आई। सर ने शोभा से कहा क्या यह तुम्हारी रिश्तेदार है ? नहीं सर। तो उन्हें बाई कहकर संबोधित करो। इस बार सफाई कर्मी को फिर से बाहर भेजा गया और शोभा ने फिर एक बार आवाज दी ,"बाई आपको प्रिन्सिपल सर बुला रहे हैं।"
हर आदमी को उसकी औकात में रखना और उससे आगे बढ़ने न देना यह बात उस विद्यालय के रग-रग में शामिल थी। ऐसे ही एक बार शोभा विद्यालय में समय से कुछ पहले पहुंच गयी थी| विद्यालय के परिसर में घूमते हुए उसकी नजर आम से लदी डाली पर पहुंची और वह खुशी-खुशी जहां तक नजर पड़ी उसने सत्तावन आम गिन लिए। अगले प्रहर उसकी पेशी हो गई मानों उसने कितना बड़ा अपराध किया हो ? "एक शिक्षक होकर क्या आपको इस तरह की बचकाना हरकत शोभा देती है ? क्या आपने कभी किसी पेड़ पर लगे आम नहीं देखे ? आगे से अपने काम से मतलब रखिए; अनावश्यक बातों पर दिलचस्पी लेने की जरूरत नहीं, आप जा सकती हैं।" सौरी सर।" कह तो दिया पर उसे अब तक समझ नहीं आया कि आम गिनना क्या गुनाह था ?
रोज परिपाठ के बाद नन्हे-नन्हे बच्चों को तीस मिनट सामूहिक काव्य-पाठ व स्टोरी टैलिंग के पश्चात कर्सिव राइटिंग की प्रैक्टिस कराई जाती। पहली बार शोभा को पता चला कि उसके लेखन की शिकायत प्रिन्सिपल सर तक पहुंच गयी है। बेंझिल मैडम से आंख बचाकर किसी तरह पूजा ने इशारों में समझा दिया कि इऩ्होंने आपकी शिकायत की है।
आपने कर्सिव का स्मॉल एफ बच्चों को गलत सिखाया है पर वह तो पढ़ाई में बहुत होशियार थी। थ्रुआउट डिस्टिंक्शन और कमाल है किसी ने उसकी गलती नहीं पकड़ी उसने बताया कि उसे कर्सिव की बुक के अनुसार ही सिखाना है। बेंझिल टीचर चाहती तो यह बात व्यक्तिगत रूप से शोभा को बता सकती थी पर उन्होंने शिकायत करके मात्र विद्यालय की परंपरा का निर्वाह किया। ऐसी कई छोटी-छोटी बातें समझा कर पूजा, शोभा को कई मौकों पर बचाती रही। इन दोनों की नजदकियां व पनपते अपने पन से कुढ़ती बेंझिल मैडम है- डक्लर्क मंडेला मिस जिनकी सिफारिश से वह लगी थी; उन तक रोज एक शिकायत लेकर पहुंच जाती।
मंडेला मिस सर की बेहद करीबी है; शोभा ने यह सावना मैडम से सुना था कि सर उनकी कोई बात नहीं टालते। रोज रोज की शिकायतों से तंग आकर पूजा ने भी शिकायत की बेंझिल मैडम रोज रिसेस में बच्चों के टिफिन से दिखाओ क्या लाया है ? फ़िनिश किया की नहीं के चक्कर में हर बच्चे के टिफिन से कुछ ना कुछ खा लेती हैं जो कि सोलह आने सच बात थी पर दोनों नहीं जानते थे कि बेंझिल टीचर का झूठ इनके सच को भारी पड़ जाएगा।
कोई ऐसा कैसे कर सकता है, मैं केवल यह देखती हूँ कि खत्येम किया की नहीं। दोनों मुझ पर झूठ इल्जाम लगा रही हैं। बहरहाल छोटे-छोटे मासूम बच्चों से मंडेला मिस की उपस्थिति में कुछ इस तरह पूछा गया- "क्या मैं रोज़ तुम्हारा टिफिन फ़िनिश करती हूँ ? दानिश मैंने तेरा टिफिन खाया क्या आज ? परिस्थिति से अनजान बच्चे समझ ही नहीं पाए कि चल क्या रहा है ? अपने पहाड़ जैसे लगने वाले टिफिन से कोई एक निवाला खा भी ले तो इसे फ़िनिश करना तो नहीं कहा जा सकता। चालीस अलग-अलग निवालों का गणित बेचारे बच्चे क्या जाने ? सो उन्होंने नो में सिर हिला दिया। अब तीनों के बीच दूरियां कुछ और बढ़ गई थी। आपस में हाय, हेलो कहते भी सकुचाते सिर्फ काम से काम। सर, कॉर्डिनेटर, बेंझिल टीचर और मंडेला मिस के चलते हर वक्त सी. सी. टी वी की निगरानी जैसे लगता। पूरी तरह व्यवहारिक शोभा को इस माहौल में अब घुटन होने लगी थी। एक-दूसरे की टाँग खींचने के अलावा कुछ नहीं | हर वक्त प्रतियोगिता, मेरा चार्ट ,मेरा रजिस्टर, मेरा पो्र्जेक्ट मेरा प्रोग्राम, सबसे बेहतर कैसे हो ? अपना काम बेहतरीन करना अच्छी बात है पर दुर्भावना व ईर्ष्या से नहीं।
एक दिन सर की अनुपस्थित में शोभा से सच की पुष्टि कराने के चक्कर में मंडेला मिस ने उसे अपने केबिन में बुलवाया। शोभा की खूबसूरत पर्सनालिटी और खुले व्यवहार से प्रभावित हो या जान- बूझकर पता नहीं, ऐसी रहस्यमयी बातें बताई कि किसी से कहना तो दूर की बात वह तो सपने में भी सोच नहीं सकती थी। सर की बेहद करीबी मंडेला मिस उन पर इतने गंभीर आरोप लगा रही थी ? उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। और आखिरकार वह शोभा को यह सब क्यों बता रही है ? वह तो मंडेला मिस से इतनी परिचित भी नहीं केवल गुडमॉर्निंन व गुडआफ्टरनुन का नाता है।
"तुमको पता है यहां इतने अनमैरिड लोगों को ही क्यों अप्वाईंट किया है, प्रिसेला टीचर है ना ! शोभा को बेहद पसंद थी ;बड़ी मधुर भाषी थी। सर पर डोरे डालती है चमची है एक नंबर की। सर का किस- किस के साथ चक्कर है ? सर दिखाते कुछ और हैं व अंदर से कुछ और ही हैं और न जाने क्या - क्या ? शोभा अवाक् उम्र में भले छोटी हो पर इतना जानती थी कि इस तरह की बातें किसी से भी बोली नहीं जाती। सर जिस मंडेला मिस को इतना अच्छा मानते हैं उसकी उनके बारे में कितनी घटिया राय है; सर के सामने सदा मुस्कुराने वाली, हर बात पर यस सर कहने वाली मंडेला मिस का रूप वो पचा नहीं पा रही थी। फिर भी उसने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया; पूजा से भी नहीं।
कुछ दिनों बाद प्रिंसिपल सर ने तीनों को अपने केबिन में बुलवाया। डर तो अंदर से तीनों ही रहे थे पर बम पूजा पर फटेगा इसकी कल्पना उसे भी नहीं थी। अचानक से सर ने पूजा को डांटना शुरू किया। हम तीनों अवाक् कोई कारण समझ नहीं आ रहा था।
"मैंने तुम्हारी परिस्थिति पर तरस खा कर तुमको नौकरी दी। तुम ये गुल खिलाओगी पता न था। यू आर फायरड कल से तुमको आने की जरूरत नहीं, अपना हिसाब किताब ले कर जाना। वो रोते- रोते कहने लगी-
सर मैंने क्या किया है ? प्लीज़ मेरा कसूर तो बताये ?
मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहता हूँ। सर प्लीज़ सर, मैंने कुछ नहीं किया, आप इन दोनों से पूछ सकते हैं। सर ने बेंझिल टीचर व शोभा से कड़े शब्दों में कह दिया- "अब से आपर दोनों इससे कोई बात नहीं केरेंगी, नहीं तो मुझे प्राईमरी का पूरा स्टाफ बदलना पड़ेगा। आप तीनों जा सकते हो। पूजा रोते-रोते अब भी कारण पूछ रही थी। दरवाजे से बाहर निकलते समय शोभा ने इतना ही सुना- "जाती हो कि धक्के मारकर बाहर निकलवाऊं।चुपचाप तीनों ने कक्षा मे प्रवेश किया। शोभा भीतर से दहल गयी थी। समझ ही नहीं पाई कि कहीं कुछ गलती है भी या यों ही। मददगार, परफेक्शनिष्ट इतनी तल्लीनता से बच्चों को पढ़ाने वाली शिक्षक के लिए कल से विद्यालय में जगह नहीं। वो लगातार रोए जा रही थी, उसकी बडी़ -बड़ी आंखों के डोरे और लाल हो गए थे। अपमान का घूंट पीकर उसने बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर लिखने का काम दे दिया। बहरहाल शोभा को उसी दिन पता चला कि पूजा को नौकरी की सख्त आवश्यकता थी।
रोते-रोते बोली- मेरी गलती तो बता देते, सच मैंने कुछ नहीं किया। अब मैं मां से क्या बोलूं ?
बेंझिल टीचर सहानुभूति के लिए भी पास नहीं आयी। शोभा समझ गयी थी कि बेंझिल टीचर और मंडेला मिस की चापलूसी के चलते एक निर्दोष व जरूरतमंद के साथ अन्याय हुआ पर वह चाहकर भी कुछ ना कर पाई क्योंकि उसकी पहुंच अमानवीयता के पार न थी। कुछ दिनों बाद उसी विद्यालय की सुमा टीचर ट्रेन में घर जाते समय मिल गई अचानक बोलते समय उनके मुंह से निकला- "पूजा स्पोक सो बेड अबाउट सर टू मंडेला मिस।" और फिर वे सतर्क हो गई। शोभा समझ गई मंडेला मिस ने पूजा को मोहरा बना दिया: सर की नजदीकी का फायदा उठा एक बेकसूर की बलि चढ़ा दी।
शोभा का मन तो कर रहा था कि जाकर सब कुछ प्रिंसिपल के सामने सच बयां कर दे पर उसकी वहां सुनता कौन ? उसने नौकरी छोड़ दी परंतु वह स्वयं को माफ नहीं कर सकी। पूजा की मदद न कर पाने की टीस आज भी उसे सालती रहती है।।