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बोझ

बोझ

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बड़े समय से पाँव में अकड़ थी। दर्द बढ़ता ही जा रहा था। वो कब से सोच रही थी की पैर जरा सीधा कर ले, पर वह दूसरों को होने वाली परेशानी से डरी जाती थी।

फिर मन में एक बैर भावना आ जाती। जब इन्होंने मेरे बारे ना सोचा तो अब भला मैं क्यों सोचू। बेवजह इतना बोझ लाद दिया मेरे ऊपर।

पर एक ममता भाव भी तो भरा था मन में। हैं तो सब अपने ही। अब बोझ अपने ना बाटेंगे तो जीवन कैसे चलेगा। आधी रात इसी उलझन में बीत गई। बड़ी दुविधा थी। जब पीड़ा असहनीय हो गई तो उसने बड़े हलके से पैर थोड़ा सीधा कर लिया।

अगली सुबह सभी समाचार पत्रों के पहले पन्ने में खबर आयी थी, 'दक्षिण में आधी, रात भूकंप से जान माल का भारी नुकसान। कईयों के मलबे में दबे होने की आशंका।

मन में थोड़ी ग्लानि थी पर कल रात धरती को अच्छी नींद आई थी। बोझ से थोड़ी राहत थी अब।


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