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Nasreen Ali

Inspirational

2.8  

Nasreen Ali

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वो एक लड़की

वो एक लड़की

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आज हम सभी लोग रजनी का दुखद समाचार सुनकर उसके घर एकत्रित हुए, सभी की आँखें नम थी। मेरे मन में पुरानी विस्मृतियाँ जागृत होने लगी, मेरी मुलाकात उससे ऑफिस में हुई थी। मैंने ट्रान्सफर पर उसी कार्यालय में ज्वाइन किया था। वो बहुत ही हँसमुख और व्यवहार कुशल थी, सभी की मदद करने के लिये आगे रहती। हमारी उससे बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी। उसके संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी के बारे में उसने बताया। ग्रेजुएशन करते हुए अपने सीनियर लड़के से दोस्ती हो गयी थी।

दोनों शादी करना चाहते थे। दोनों ये भी जानते थे कि उनके घरवाले किसी भी हालत में तैयार नहीं होगे। रजनी पंजाबी परिवार से और रहमान मुस्लिम परिवार से था। वो अपने परिवार में तीन भाइयों में सबसे बड़ी और इकलौती बहन थी। उसने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ कोर्ट मैरिज कर ली। माता-पिता के दिल पर क्या गुजरी होगी इसका अंदाजा उसे आज हो रहा था। रहमान के घर में, उनका खानपान, रहन-सहन, आदतें, धर्म सब अलग था। उसे उस घर में अपनी जगह बनाना उसके लिये चुनौतीपूर्ण था लेकिन उसने अपने व्यवहार से घर के लोगों के दिल में जगह बनाने में कामयाबी हासिल कर ली उसके लिये सबसे बड़ी कोशिश जो चुनौतीपूर्ण थी उनके मजहब को जानने की और रीतिरिवाज को अपनाने की। उसने यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के साथ-साथ उर्दू और अरबी को भी पढ़ना सीख लिया था।

वो बहुत खुश थी कि जिंदगी अब शायद ठीक चलेगी लेकिन जिंदगी मुश्किलों का ही नाम है। पति की पोस्टिंग मुम्बई हो गयी, अब पति के हिस्से की जिम्मेदारी भी उस पर थी। सास-ससुर की देखभाल, घर और बाहर के काम और छोटे बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी सब उस पर थी। पाँच साल बाद उसके पति का ट्रांसफर भोपाल हो गया। उसे लगा कि अब खुशी के दिन आने वाले हैं लेकिन सब कुछ हमारे चाहने और हमारे सोचने से नहीं होता। प्रकृति को हमारे लिये कुछ और तय मंजूर होता है। 2004 में उसे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो गयी। जिस दिन रिपोर्ट आयी उसे ऐसा लगा कि मानों सब कुछ खत्म हो गया।

उसने सोचा ऊपर वाला ऐसे कैसे कर सकता है, अभी तो इतनी मुश्किलों के बाद सबने से अपनाया है, लेकिन सच तो यही था कि उसे कैंसर हो गया था। उसे लगा कि इससे बुरा क्या होगा, जिंदगी यही खत्म हो गयी, लेकिन ये शुरूआत थी। अभी तो उसे नंगे पांव अंगारों पर चलना था। जिस वक्त कैसंर हुआ वह अपने पति और छोटे बच्चे के साथ अपने नये घर में थी। नये घर की खुशियाँ भी नहीं मना पायी थी और वक्त ने इतना बड़ा दर्द दिया था। उसके पति ने भी दो महीने पहले ही प्राइवेट बैंक ज्वाइन किया था। उनके पास छुट्टियों की समस्या थी। उसका बहुत बड़ा इम्तहान था कि वो अपनी कीमोथेरेपी के लिये खुद गाड़ी चला के जाती थी। उसने तय कर लिया था कैंसर की बीमारी को हराना है। उसकी सोच थी बच्चे की परवरिश के लिये मुझे खुद को स्वस्थ रखना ही पड़ेगा।

सफर आसान नहीं था लेकिन उसने हिम्मत और सकारात्मक सोच लेकर कदम बढ़ाना शुरू किया। उसको ऐसा आभास होने लगा, उसके पति को छट्टियों की समस्या नहीं थीं उसकी बीमारी की वजह से उनका रवैया कुछ बदला सा जा रहा था। रैडिएशन के लिये उसे मुम्बई जाना पड़ा तो पति ने साथ चलने के लिये एक बार भी नहीं कहा, उसको बहुत बुरा लगा। मुम्बई अकेले 12 माह का रेडिएशन कराई। उसने सोचा कि ठीक होकर के ही आना है। आखिर वो दिन भी आ गया। जब वो ठीक होकर लौटी, ये सोचकर कि अब जिंदगी ने उसे नया मौका दिया है वो फिर जिंदगी का सामना करने के लिये तैयार हो गयी थी। जिंदगी खुशगवार होकर गुजर रही थी, लेकिन किस्मत को और कुछ दिखाना था। 15 दिन बाद ही उसके पापा की एक हादसे में मौत हो गयी, वो फिर टूट गयी क्योंकि उसके पापा उसकी हिम्मत थे। उन्होनें उसे जिंदगी में हर मुश्किल वक्त में सहारा दिया। लंबा समय लगा उसे संभलने में।

कुछ ही दिन बीतें होगें और उसकी जिंदगी ने फिर एक इम्तहान में डाल दिया। उसके पति का घर से बाहर रहना, उदासीपूर्ण रवैया कुछ और कहानी बता रहा था। एक दिन उसे पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है, जिस समय उसे अपने पति के सहारे की अति आवश्यकता थी। उसका कहना था कि कैंसर की बीमारी तो कुछ नहीं, ये बेवफाई तो उसे कैंसर से भी बढ़कर है जिसने उसके पैरों के नीचे से जमीन खींच ली। अब किससे लिये जीना, उस शख्स के लिये उसने सारी दुनिया छोड़ दी जिसके लिये अपने माँ-बाप को आँसू दे दिए। पति उसकी बीमारी के वक्त उससे बेवफाई कर रहा है। वो पूरी तरह टूट गयी, बिखर गयी, संभलना मुश्किल लग रहा था, लेकिन उसने बीमारी की हालत में भी हिम्मत नहीं हारी। उसने एक ही पल में तय कर लिया था, ऐसे आदमी के साथ नहीं रहना जिसने इतना बड़ा विश्वासघात किया। उसकी अपने पति से तलाक ले लिया। उसने हिम्मत दिखायी और तय किया, जो होगा अकेले ही लड़ना है। बीमारी की हालत में भी अपने बच्चे की परवरिश, घर, नौकरी अकेले ही संभाला। अभी वो इन्ही परेशानियों मे तो थी ही, तभी उसे रूटीन चैकअप के लिये मुम्बई जाना पड़ा। जहाँ उसे डॉक्टर ने बताया कि उसे फिर से कैंसर हो गया है।

ऊपर वाले ने उसे फिर वहीं ला के खड़ा कर दिया जिस रास्ते को उसने बड़ी हिम्मत से पार किया था। डॉक्टर उसे हमेशा फाइटर गर्ल्स कहते थे। उसने अकेले सभी परेशानियों को झेलते हुए भी रोना छोड़ दिया। छह महीने के बाद फिर से बीमार रहने लगी। वो इस बार बीमारी और सदमे को बर्दास्त नहीं कर सकी। और वो हम सभी को छोड़कर मौत के आगोश में समा गयी। कैंसर जैसी बीमारी से लड़ते हुए अपने जीवन का एक महत्वूपर्ण निर्णय किसी दूसरी स्त्री के साथ अपने स्वाभिमान के साथ जीने का। इतने संघर्ष और इतनी तकलीफ़ों के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और लोगों के लिये एक मिसाल बन गयी। सभी महिलाओं के लिये प्रेरणास्रोत बन गयी थी।


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